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________________ मुहणोत जी और ( २ ) भोजराजजी। महेशजी के देवीचन्द्र और कालचन्द नामक दो पुत्र थे । देवीचन्द्रमी के बाद क्रम से शार्दूलसिंहजी और देवीदासजी हुए, जिनके समय में कोई महत्वपूर्ण घटना नहीं हुई। खेतसिंहजी ___ आप संवत् १४५४ में राव चुन्डाजी के राज्यकाल में मारवाद की पुरानी राजधानी मण्डोवर आये । ख्यातों में लिखा है कि आपने मारपद राज्य की स्थापना तथा विस्तार में राव तुण्डाजी का बहुत साथ दिया था। मेहराजजी आप राव जोधाजी के समय में मण्डोवर से जोधपुर आकर बसे । ख्यातों में लिखा है कि आप जोधाजी के समय में प्रधान के पद पर रहे। सम्वत् १५२६ में आपने किले के पास हवेली बनवाई। आपके बाद श्रीचन्द्रजी, भोजराजजी, कालुजी, बस्तोजो, मोहनजी (द्वितीय) सामन्तजी, नगाजी, और सूजाजी हुए जिनका विशेष वृतान्त नहीं मिलता है। अचलाजी आप सूजाजी के पुत्र थे। जब राव चन्द्रसेनजी ने विपतिग्रस्त होकर जोधपुर छोड़ दिया था और सम्बत् १६२७ में मारवाड़ के सीवाणे के जंगल में रहे थे, तब अचलाजी भी आपके साथ थे। इसके बाद सम्बत १६३१ में जब चन्द्रसेनजी मेवाड़ परगने के मुरादा * गाँव में जाकर रहे थे, तब भी अचलाजी आप के साथ थे। वहाँ से रावजी सिरोही इलाके के कोरंटे ग्राम में डेढ़ वर्ष तक रहे। वहाँ भी अचला जी आपकी सेवा में बराबर रहे। इसके पश्चात् रावचन्द्रसेनजी हूँगरपुर के राजा के पास गये । वहाँ उन्होंने आपको गलियाकोट नामक ग्राम दिया जहाँ रावजी लगभग ३ वर्ष तक रहे। यहाँ भी राजभक्त अचलाजी ने आपके साथ विपति के दिन बिताए। इसके पश्चात् रावजी के पास मारवाद के सरदारों का सन्देश आया कि मारवाद का राज्य खाली है। आप तुरन्त पधारिये। तब रावजी मारवाद के सोजत नगर की ओर गये। कहना न होगा कि अचलाजी भी आपके साथ आये। इसी समय फिर बादशाह अकबर ने चन्द्रसेन पर फौज भेजी। सम्वत् १६३५ के श्रावणब्द 11 को सोजत परगने के सवराद गाँव * यह ग्राम इस वक्त मारवाद के बाली परगने में है। यह गाँव गव चन्द्रसेनजी की राणी को उदयपुर राणाली की भोर से दायजे में मिला था। .....
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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