________________
मुहणोत
मुहणोत गोत्र की उत्पत्ति - मुहणोत की उत्पत्ति राठौड़ वंश से हुई है। मुहणोतों की ख्यातों में लिखा है जोधपुर के राव रायपालजी के तेरह पुत्र थे। इनमें बड़े पुत्र कन्हपालजी तो राज्याधिकारी हुए और चतुर्थ पत्र मोहनजी मुहणोत या मोहनोतकुल के आदि पुरुष हुए। भाटों की ख्यातों में लिखा है कि एक समय मोहनजी शिकार खेलने गये थे । आपकी गोली से एक गर्भवती हिरनी मर गई। इसी बीच में उसके गर्भ से बच्चा हुआ और वह अपनी मरी हुई माता का स्तन पीने लगा। यह करुणापूर्ण दृश्य देख कर मोहनजी का कोमल हृदय पसीज गया । उन्हें अपने इस हिंसाकाण्ड से बड़ी घृणा हुई। उनके सामने उक्त हरिनी और उसके बच्चे का करुणा पूर्ण दृश्य नाचने लगा । वे बड़े गम्भीर विचार में पड़ गये और खेड़ ग्राम की एक बावड़ी के पास बैठ गये । इतने ही में जैनाचार्य्यं यति शिवसेनजी ऋषिश्वर उधर से निकले और आपने मोहनजी से जल छानकर पिलाने को कहा। इस पर मोहनजी आनन्द से गद् गद् हो गये । उन्होंने ऋषिश्वर को जल पिला कर अपने आपको धन्य समझा। इसके बाद मोहनजी ने बड़ी दीनता के साथ उक्त पतिजी से निवेदन किया कि अगर आपकी मुझ पर कुछ भी दया है तो इस हिरनी को जीवदान दीजिये । इस पर ऋषिश्वर ने उक्त हरिनी पर अपने हाथ की लकड़ी फेरी जिससे वह जीवित हो उठी। यह देखकर मोहनजी बड़े ही प्रसन्न हुए उनकी आत्मा को बड़ी शांति मिली। उन्होंने ऋषिश्वर शिवसेन जी को अपना गुरु स्वीकार कर सम्वत् १३५१ की कार्तिक खुदी १३ को खेड़ नगर में जैनधर्म का अवंलम्बन लिया ।
उपरोक्त घटना-वर्णन में कुछ अतिशयोक्ति हो सकती है, पर यह निश्चय है कि किसी करुणोत्पादक घटना से प्रभावित होकर मुहनोतवंश के जनक मोहनजी ने यति श्री शिवसेन ऋषिश्वर से जैन धर्म स्वीकार किया और तब से ओसवाल जाति में उनकी गणना होने लगी ।
सपटसेनजी
आप मोहनजी के पुत्र थे । आपका दूसरा नाम सुभटसेनजी भी था । भाटों की ख्यात में लिखा है कि आप जोधपुर नरेश राव कन्हपालजी के समय में प्रधानगी के पद पर रहे। सम्बत् १३७१ में आप मौजूद थे । आपके पीछे आपकी पत्नी श्रीमती जीवादेवी सती हुई । आपके दो पुत्र थे – (१) महेश
४६