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ओसवाल जाति की उत्पत्ति
एक ही समान मिलता है तब उत्पत्ति के सम्बन्ध में ६२२ वर्ष का अंतर किस प्रकार पड़ गया, यह समास में नहीं आता।
आधुनिक इतिहास कारों का मत
ऊपर हम ओसवाल जाति के सम्बन्ध में जैन ग्रन्थों और भाटों की वंशावलियों के मत दे चुके हैं। अब नवीन इतिहास के प्रकाश में हम यह देखना चाहते हैं कि ओसवाल जाति की उत्पत्ति के सम्बन्ध में उपरोक्त मतों का वैज्ञानिक और तार्किक आधार कितना मजबूत है और सत्य और वास्तविकता की कसौटी पर ये विचार पद्धतियां कहां तक खरी उतरती हैं। यह बात तो प्रायः निर्विवाद सिद्ध है कि ओसियां नगरी की स्थापना उपलदेव परमार ने की जो कि किसी कारण वश अपना देश छोड़ कर मंडोवर के पहिः हार राजा की शरण में आया था। यह उपलदेव कहां से आया था इसके विषय में कई मत हैं। ऊपर हमने जिन मतों का उल्लेख किया है उनमें इसका आना भीनमाल से सिद्ध होता है और कुछ लोगों के मत से इसका आना किराड़ नामक स्थान से पाया जाता है। मगर ये दोनों ही बातें गलत मालूम होती हैं । क्योंकि भीनमाल के पुराने मन्दिरों में जो संस्कृत लेख पत्थरों पर खुदे हुए मिले हैं, उनमें से दो लेख कृष्णराज परमार के हैं । एक संवत् ११३ का और दूसरा संवत २३ का है। पिछले लेख में कृष्णराज के बाप का नाम धंधुक लिखा है। यह धंधुक आबू का राजा था। इसके दो पुत्र थे। एक पूर्णपाल और दूसरा कृष्णराज । पूर्णपाल के समय का एक लेख संवत १०९८ का सिरोही जिले के एक वीरान गाँव बसंतगढ़ से मिला है और दूसरा संवत ११०२ का लिखा हुआ मारवाड़ के भडूंद नामक एक गाँव में मिला है। इन दोनों लेखों से यह बात पायी जाती है कि धंधुक का बड़ा पुत्र पूर्णपाल अपने पिता की गद्दी पर बैठा और कृष्णराज को भीनमाल का राज मिला।
कृष्णराज के पीछे भीनमाल का राज्य १५० वर्ष तक उसके वंश में रहा जिसका उल्लेख संवत् १२३९ के लेख में पाया जाता है जिसमें “महाराजपुत्र जैत्तसिंह" का नाम आया है । नाम के साथ यद्यपि जाति नहीं लिखी हुई है पर ऐसा संभव है कि यह भीनमाल का अंतिम राजा या युवराज रहा होगा। क्योंकि इसके पीछे संवत १२६२ के लेख में चौहान राजा उदयसिंह का नाम आता है और उसके पश्चात् संवत १३६२ तक के लेखों में चौहान राजाओं के ही नाम आते हैं जिनका कि मूल पुरुष नाडोल
® यह लेख अजमेर में रा. ब. पं. गौरीशंकर जी ओझा के पास है।
+ रोहड़े नामक स्थान से रा. पं. गौरीशंकरजी को दानपत्र मिला है जिसमें उत्पल राज से वंशावली दी है और उक्त वंशावली में अंधुक के तीन पुत्र बतलाये हैं। ये तीनों ही अपने पिता के पीछे क्रमश: राजा हुए।