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________________ श्रीसवाल जाति का इतिहास ऐसी हैं जो अत्यन्त अतिशयोक्ति और काव्यमय हैं और विचार स्वातंत्र्य के इस युग में बुद्धिमान लोगों के मस्तिष्क पर अनुकूल प्रभाव नहीं डाल सकती । फिर भी इसके अंदर जो मूल तत्व हैं उनपर विचार करना प्रत्येक बुद्धिमान और शोध करने वाले व्यक्ति का कर्तव्य हो जाता है । इसमें से नीचे लिखे हुए खास तत्व निकाले जा सकते हैं । ( १ ) ऊपलदेव के द्वारा ओसियां नगरी का बसाया जाना । (१) रत्नप्रभसूरि के द्वारा ऊपलदेव का मय नगर के सारे क्षत्रियों के जैन-धर्म ग्रहण करना और ओसवाल जाति की स्थापना होना । (३) मंत्री उहड़ के द्वारा महावीर मन्दिर का निर्माण किया जाना और स्वयं चामुंडा देवी के द्वारा बालू एवम् दूध से उस प्रतिमा का बनाया जाना । (४) इन सब घटनाओं का विक्रम के चार सौ वर्ष का होना । उपरोक्त मत का समर्थन जैनमुनि ज्ञानसुन्दरजी ने कई दलीलों और प्रमाणों के साथ किया है। आपने जैन जातियों के इतिहास के सम्बन्ध में बहुत गहरा परिश्रम और खोज करके " जैन जाति महोदय" नामक एक ग्रन्थ लिखा है । इस ग्रन्थ में आपने जहाँ पौराणिक चमत्कारपूर्ण दन्त कथाओं और किम्वदन्तियों को आश्रय दिया है वहाँ ऐतिहासिक खोज, अन्वेषण और तर्क-वितर्क के सम्बन्ध में बहुत मेहनत के साथ बहुत सी ऐतिहासिक सामग्री भी संग्रहित की है आपका यह दृढ़ मत है कि ओसवाल जाति की उत्पत्ति वि० सं० से चार सौ वर्ष पूर्व हुई है। आपकी दी हुई दलीलों पर हम आगे चलकर विचार करेंगे । 'भाटों, भोजकों और सेवकों का मत दूसरा मत इस जाति के सम्बन्ध में भाटों, भोजकों और सेवकों की वंशावलियों में पाया जाता है। इन वंशावलियों में ओसवालों की उत्पत्ति संवत् २२२ ( बीये बाईसा ) में बतलाई गई है। समय के भेद के अलावा कथानक और किम्ब देतियाँ इनकी और जैन ग्रन्थों की प्रायः एक समान ही है । ये लोग भी राजा ऊपलदेव को ओसियाँ नगरी का बसाने वाला मानते हैं और रख प्रभ सूरि के द्वारा उसका जैन-धर्म में दीक्षित होना तथा ओसवाल जाति की स्थापना उसी प्रकार मानते हैं। इसी दलील की पुष्टि में हम को कई ओसवाल खानदानों के पास ऐसे वंश वृक्ष मिले जिनका सम्बन्ध संवत २२२ वि० से मिलाया हुआ था। मगर जब घटनाएं सब एक समान हैं और आचार्य तथा राजा और स्थान का नाम भी ८
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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