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________________ ओसवाल जाति की उत्पत्ति इसके पूर्व चामुंडा माता के मन्दिर में आश्विन मास की नव रात्रि के अवसर पर भैसों और बकरों का बलिदान हुआ करता था । आचार्यश्री ने उसको रोककर उसके स्थान पर लड्डू, चूरमा, कापसी, खाजा नारियल इत्यादि सुगंधित पदार्थों से देवी की पूजा करने का आदेश किया। इससे चामुडा देवी वड़ी नाराज हुई और उसने आचार्यश्री की भाँख में बड़ी तकलीफ़ पैदा कर दी। आचार्यश्री ने बड़ी शांति से इस तकलीफ़ को सहन किया । चामुंडा ने जब आचार्यश्री को विचलित होते न देखा तब वह बड़ी लाजत हुई और आचार्यश्री से क्षमा माँग कर सम्यक्त को ग्रहण किया उसी समय से उसने प्रतिज्ञा की कि आज से माँस और मदिरा तो क्या लालरंग का फूल भी मुझपर नहीं चढ़ेगा तथा मेरे भक्त जो ओसियों में स्वयंभू महावीर की पूजा करते रहेंगे उनके दुःख संकट को मैं दूर करूँगी। तभी से चामुंडा देवी का नाम सच्चिया देवी पड़ गया और आज भी यह मंदिर सच्चिया माता के मंदिर के नाम से मशहूर है। जहाँ पर अभी भी बहुत से ओसवालों के बालकों का मुण्डन संस्कार होता है। ऐसा कहा जाता है कि उसी समय उहड़ मंत्री ने महावीर प्रभु का मंदिर तैयार करवाया और उसकी मूर्ति स्वयं चामुंडा देवी ने बालरेत और गाय के दूध में तैयार की जिसकी प्रतिष्ठा स्वयं रत्नप्रभ सूरि मे मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी गुरुवार को अपने हाथों से की। ऐसा कहा जाता है कि ठीक इसी समय कोरंटपुर नामक स्थान में भी वहाँ के श्रावकों ने श्री वीरप्रभु के मन्दिर की स्थापना की जिसकी प्रतिष्ठा का मुहूर्त भी ठीक वही था जोकि उपकेश पट्टण के मंदिर की प्रतिष्ठा का था। दोनों स्थानों पर अपनी विद्या के प्रभाव से आचर्य श्री ने स्वयं उपस्थित होकर प्रतिष्ठा करवाई । इसके लिए उपकेश चरित्र में निम्न लिखित श्लोक लिखा है । .. सप्तत्य ( ७० ) वत्सराणां चरम जिनपतेर्मुक्त जातस्य वर्षे । पंचम्यां शुक्लपक्षे सुहगुरु दिवसे ब्रह्मणः सन्मुहूर्ते ॥ रत्नाचार्यः सकलगुणयुक्तै, सर्व संघानुज्ञातैः । श्रीमद्वीरस्य बिम्बे भवशत मथने निर्मितेयं प्रतिष्ठाः ॥ १ ॥ उपकेशे च कोरंटे, तुल्यं श्री वीर बिम्बयो । प्रतिष्ठा निर्मिता शक्त्या, श्री रत्नप्रभसूरिभिः ॥ १ ॥ ऊपर हमने ओसवाल जाति की उत्पत्ति के सम्बन्ध में जैनाचार्यों तथा जैनग्रन्थों का जो मत है उसका विस्तृत रूप से उल्लेख कर दिया है। इस उल्लेख के अंतर्गत हम समझते हैं कि बहुत सी बातें
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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