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श्रीसवाल जाति का इतिहास
के राजा अल्हण देव का पुत्र कीतू था और जिसने पंवारों से जालोर लेकर अपमा राज्य अलग जमाया था। इसका एक दानपत्र संवत १२१८ का लिखा हुआ इस समय नाडोल के महाजनों के पास है इस दानपत्र से पता चलता है कि उस समय यह अपने बड़े भाई कल्हणदेव के दिये हुए गांव 'नाडलाई' में रहता था । संवत् १२१८ के पश्चात् इसने जालोर को विजय किया होगा और संभव है जिन पंवारों से यह किला लिया गया वे या तो राजा कृष्णराज के खानदान के होंगे या उसकी आबूवाली बड़ी शाखा के। राजा कीतू के पश्चात उसका लड़का उदयसिंह हुआ। इसीने संभव है, कृष्णराज के पोतों से संवत १२३९ और संवत १२६२ के बीच किसी समय भीनमाल को फतह किया होगा ।
उपरोक्त दलीलों से यह बात सहजही मालूम हो जाती है कि भीनमाल का पहला पंवार राजा कृष्णराज संवत ११०० के पश्चात हुभा। उससे पहले भीनमाल उसके पिता धुंधुक के खालसे में होगा। उपलदेव का इन लेखों में पता नहीं है।
दूसरा मत किराडू के सम्बंध में है। यहां पर भी एक लेख संवत ११३८ का मिला है जो पंवारों से सम्बंध रखता है। इस लेख से पता चलता है कि मारवाद का पहला पंवार राजा सिंधुराज था। उसका राज्य पहाड़ों में था। उसके वंश में क्रमशः सूरजराज, देवराज, सोमराज, और उदयराज हुए। उदयराज संवत ११३८ में मौजूद था। यहां भी उपलदेव का कुछ पता नहीं लगता।
जैन इतिहास के सुप्रसिद्ध विद्वान् बाबू पूरनचंदजी नाहर एम. ए, कलकत्ता निवासी से जब हमने इस विषय में पूछा तो उन्होंने आबू के लेखों की की हुई खोज को हमें बतलाया। उन्होंने कहा कि पंवारों का जन्म स्थान आबू है। वहां के एक लेख में धंधुक से पांच पुश्त ऊपर उत्पलराज का नाम मिलता है। इन लेखों * में यद्यपि पंवारों का मूल पुरुष धूमराज को माना है मगर वंशवृक्ष उत्पल राज से ही शुरु किया गया है। इससे पता चलता है कि संभव है भूमराज के पीछे और उत्पलराज के पहले बीच के समय में कुछ राजनैतिक गड़बड़ हुई हो और उत्पलराज से फिर राज्य कायम हुआ हो । क्या आश्चर्य है इसी कारण उत्पलराज को मंडोवर के पदिहार राजा की शरण में माना पड़ा हो। इससे जहांतक हमारी समझ है ओसियां का बसाने वाला उपलदेव ही आबू का उत्पलराज हो। जैन प्रश्नोत्तर ग्रंथ में भी उपलदेव को उत्पल कंवार लिखा है। ज्यादा खोज करने पर यह भी पता चलता है कि विपत्ति के टल जाने पर उत्पलराज वापस आबू को लौट गया और वहां का राजा हुआ।
स्थान ही को तरह उत्पलराज के समय या जमाने में भी बड़ी गड़बड़ है । जैन ग्रन्थों में
* ये लेख पाद पर बसंतपाल और अचलेश्वर जी के मन्दिर में बुरे हुए है।