________________
श्री जैन मूर्ति पूजक प्राचार्य
श्री आचार्य विजयानन्द सूरिजी (प्रसिद्ध नाम श्री मात्मारामजी महाराज)-आप उन्नीसवीं सदी के अत्यन्त प्रख्यात् जैनाचार्य थे। आप उन महामानों की श्रेणी में हैं, जिन्होंने जैनागम की कठिन समस्याओं पर प्रकाश डालकर अपने योग बल के प्रभाव से भारत भूमि में आत्मज्ञान की पीयूषधारा को प्रवाहित किया है। भाप वेद वेदांग और दर्शनादि भागों में पूर्ण पारंगत थे। आपने अनेकों प्रन्यों की रचनाएँ की। पंजाब देश में आपने अत्यधिक विवरण एवं उपकार किया। भापके स्मारक में पंजाब प्रान्त में अनेकों मंदिर, भवन, सभाएँ, पाठमालाएँ एवं पुस्तकालय स्थापित हैं। सिद्धाचल तथा होशियारपुर में भापकी भव्य प्रतिमा स्थापित हैं। विक्रमी संवत् १८९३ की चैत सुदी को आपका जन्म हुभा। पास काल में पिताजी के स्वर्गवासी हो जाने से १४ साल की भायु में भाप जीरा चले आये। यहाँ भाने पर बीस वर्ष की आयु तक भाषने स्थानक मत के तमाम स्तोत्रों को कंठस्थ कर लिया। इसके पश्चात् मापने व्याकरण और साहित्य का अध्ययन कर पाय, सांस्य, वेदान्त और दर्शन ग्रंथ पदे। धीरे २ भापके मन में मूर्ति पूजा के विचार रद होते गये, और मापने संवत् १९३२ में अपने ५ साथियों सहित मुनिराज बुद्धिविजयजी से मंदिर सम्प्रदाय की दीक्षा ग्रहण की। तब आपका नाम “मानन्द विजय" रूखा गया। लेकिन भाप मारमाराम" के नाम से ही प्रसिद्ध रहे। गुजरात से भाप पंजाब पधारे। पंजाब प्रान्स में आपके प्रखर भाषणों ने नवजीवन फूंका। संवत् १९१३ में आपके पालीवाना चातुर्मास में भारत के विभिन्न प्रान्तों की ३५ हजार जैन जनता ने भापको "सूरिधर" और "बाग" की पदवी से विभूषित किया । केवल भारत में ही नहीं, विदेशों में भी भापकी प्रखर बुद्धि की गूंज हो गई थी। कई बार मापके पास विदेशों से भी निमंत्रण आये। मापने जीवन के अंतिम ३ वर्ष पंजाब प्रान्त में भ्रमण करते हुए व्यतीत किये। भाप संवत् १९५३ की ज्येष्ठ सुदी अष्ठमी की रात्रि में अपनी कीर्ति कौमुदी को इस असार संसार में छोड़ कर स्वर्गवासी हुए । आपके गुरु भाई प्रवर्तक कान्तिविजयजी महाराज वृद्ध एवं विद्वान महात्मा हैं। आपकी वय ८२ साल की है तथा आप पाटण गुजरात में विराजते हैं। आचार्य विजयवल्लभसूरिजी आपको बड़ी पूज्य रष्टि से देखते हैं। आपकी सेवा में मुनि पुण्य विजयजी रहते हैं।
श्री श्राचार्य विजय नेमिसरिजी-आपका जन्म माहुवा (मधुमती मगरी) में संवत् १९२९ की काती सुदी । को सेठ लक्ष्मीचन्द माई के गृह में हुआ। संवत् १९४५ की जेठ सुदी • को मापने गुरु वृद्धिचन्दजी महाराज से दीक्षा गृहण की। संवत् १९६० की कार्तिक वदी • को भापको "गणीपद" एवं मगसर सुदी ३ को पापको “पन्यास पद" प्राप्त हुआ। इसी प्रकार संवत् १९६४ को जेठसुदी दिव भावनगर में आप "आचार्य" पद से विभूषित किये गये । आपने जैसलमेर, गिरनार, आबू, सिदमेव भादि के संघ निकलवाये, कापरड़ा आदि कई जैन तीर्थों के जीर्णोद्धार में आपका बहुत भाग रहा है। भापये कई तीर्थों एवं मदिरों की प्रतिष्ठाएँ करवाई । आप न्याय, यामण एवं धर्मज्ञान के प्रखर शाता है। आपने अहमदाबाद में “जैन सहायक फंड" की स्थापना करवाई। बाप ही के पुनीत प्रवास से भ० भा० घेताम्वर मूर्तिपूजक साधु सम्मेलन का अधिवेशन अहमदाबाद में सफल हुना। माप धर्मशाखा, न्याय व व्याकरण के उपकोटि के विद्वान क्या तेजस्वी और प्रभावशाली साई है। मापने भनेको प्रन्थ की रचनाएँ कीं। माप
२९