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पोसवाल जाति का इतिहास
विनय विजय उपाध्याय
ये श्री यशोविजय के समकालीन और उनके बड़े विश्वास पात्र थे। अपने समय के ये बड़े प्रतिभाशाली और नामाङ्कित विद्वान थे। हीरविजयसूरि के शिष्य कीर्तिविजयसूरि इनके गुरु थे। इन्होंने कल्पसूत्र पर ६५४० श्लोक की कल्प सुबोधिका मामक टीका रची। इसी प्रकार नयकर्णिका और लोक प्रकाश नामक २० हजार श्लोक की एक विशाल पद्यबद्ध ग्रन्थ की रचना की। इसी प्रकार आपने और भी कई बहुमूल्य ग्रन्थों की रचना की। • श्री मेघविजय उपाध्याय
ये भी श्री हीरविजयसूरि की परम्परा में यशोविजय के समकालीन थे । म्याय, व्याकरण, साहित्य, ज्योतिष और अध्यात्म विषय के ये प्रकाण्ड पण्डित थे । इन्होंने संवत् १७२७ में देवानन्दाभ्युदय नामक काव्य सादड़ी में रचकर तैयार किया। इसका प्रत्येक श्लोक महाकवि माघ रचित माध काव्य के प्रति श्लोक का अन्तिम चरण लेकर प्रारम्भ किया गया है और बाद की तीन २ लाइनें उन्होंने अपनी ओर से सजाई हैं। इस ग्रंथ में सात सर्ग हैं । इसी प्रकार मेघदूत समस्या नामक एक १३० श्लोक का काम भी इन्होंने बनाया है इसमें भी मेघदूत काम्य के प्रत्येक श्लोक का अन्तिम चरण कायम रखकर इन्होंने उसे पूरा किया है। इसी प्रकार श्री विजय प्रभसूरि के जीवनचरित्र को प्रकाशित करने वाला एक दिग्विजय महाकाव्य भी रचा है जिसमें आचार्य श्री के पूर्वाचार्य का संक्षिप्त वर्णन और तपागच्छ की पट्टावलि दी है। इसी प्रकार इन्होंने अपने शान्ति-नाथ चरित्र में भी अपनी काव्य प्रतिभा का पूरा चमत्कार बतलाया है। इसमें महाकवि हर्ष रचित नैषधीय महाकाव्य के श्लोक का एक २ चरण लेकर उसे अपने तीन चरणों के साथ सुशोभित किया है। मगर इनकी काव्य प्रतिभा का सबसे अधिक चमत्कार इनके "सह संधान" नामक ग्रन्थ में दिखलाई देता है । यह काव्य नवसर्गों में विभक्त है। उसमें प्रत्येक श्लोक ऋषभदेव, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर ये पाँच तीर्थङ्कर तथा रामचन्द्र और कृष्ण वासुदेव इन सात महा पुरुषों के सम्बन्ध में है। इसमें का प्रत्येक श्लोक इन सातों महापुरुषों के सम्बन्ध में एक ही प्रकार के शब्दों से भिन्न २ घटनाओं का उल्लेख करता है। इस काव्य पर इन्होंने स्वयं ही टीका भी रची है।
इसी प्रकार आपकी पंच तीर्थ स्तुति, पंचाख्यान (पंचतंत्र ) लघुत्रिष्ठ चरित्र नामक कथा (त्रिषिष्ठ शलाका पुरुष ) चन्द्रप्रभा हेमकोमुदी नामक व्याकरण, उदयदीपिका, वर्ष प्रबोध, मेव महोदय, रमलशास्त्र इत्यादि ज्योतिष ग्रन्थ और मातृ का प्रसाद, सत्वगीता, ब्रह्मबोध नामक आध्यात्मिक ग्रंथों की रचना की। प्राकृत भाषा में आपने युक्ति प्रबोध नामक १३०० श्लोक के एक विशाल नाटक की रचना की। मतलब यह कि आपकी प्रतिमा सर्वतो मुखी थी।