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भोसवाल जाति का इतिहास आचार्य नेमीचन्द्रसूरिजी
भापका दूसरा नाम देवेन्द्रर्माण था। भाप बड़गच्छ के आनदवसूरि के शिष्य थे। विक्रम संवत् १२९ में आपने उत्तराययन सूत्र पर टीका की। आपने पर वचन सारोद्धार आख्यान मगिकोप तथा वीर चरित्र आदि ग्रन्थ रचे हैं। आपको सैद्धान्तिक शिरोमणि की उपाधि भी प्राप्त थी।
आचार्य जिन वल्लभसूरि __जैन धर्म के आप महान् प्रतिभाशाली, कीर्तिमान और प्रख्यात् आचार्य थे। भाप खरतरगच्छ के जन्मदाता कहे जाते हैं। चित्रकूट में आपने अपने उपदेश से सैकड़ों आदमियों को जैन धर्म से दीक्षित किया और २ विधि चैत्य की प्रतिष्ठा की। इसके बाद आप ने बागड़ प्रान्त के लोगों को जैन धर्म का प्रतिबोध दिया और वहाँ भगवान महावीर की धर्भध्वजा उड़ाई। इसके बाद आप धारा नगरी पवारे, जहाँ के राजा नरवर ने आपका बड़ा आदरातिथ्य किया। इसके बाद आपने नागोर में नेमिजिनालय की और मरवरपुर में विधि-चैत्य की प्रतिष्ठा की।
अभयदेव सूरि के आदेश से देवभद्राचार्य ने आपको सूरि का पद प्रदान किया। इससे वे अभयदेव सूरि के पट्ट-धर शिष्य हो गये । इसके ६ मास वाद संवत् ११६७ में आपका स्वर्गवास हुभा । भापने कई ग्रंथ रचे, जिनमें से कुछ के नाम इस प्रकार हैं। (1) पिंड विशुद्धि प्रकरण ( २ ) गणधर सार्थशतक (३) आगमिक वस्तु विचारसार ( ४ ) पौषध विधि प्रकरण (५) संघ पट्टक प्रतिक्रमण समाचारी (६) धर्म शिक्षा ( 0 ) धर्मोपदेशमय द्वादश कूलकरूप प्रकरण (८) प्रश्नोत्तर शतक (९) भंगार शतक (1० ) स्वप्माष्टक विचार (1) चित्रकाव्य (१२) अदित शान्ति स्तव (1) भावारि वारण स्तोत्र ( 11 ) जिनकल्याणक स्रोत्र (१५) जिन चरित्रमय जिन प्रोत्र (१६) महावीर चरित्रमय वीरस्तव आदि आदि ।
कहा जाता है कि संवत् ११६४ में जिन वल्लभसूरिजी ने अपनी कृतियों में से भष्टसप्तति का संघ पट्टक और धर्म शिक्षा आदि को चित्रकूट, नरवर, नागोर, मरुपुर आदि के स्वप्रतिष्ठित विधि चैत्वों में प्रशस्ति रूप से खुदवाये। कक सूरिजी
भाप उकेशगन्छ के देवगुप्त सरि के शिष्य थे । मापने श्री हेमचन्द्राचार्य तथा कुमारपाल राजा