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________________ राजनैतिक और सैनिक महत्व मेहता अवीरचन्दजी इस खानदान में आप बड़े बहादुर और प्रतापी हुए। जिस समय आप कार्य्यक्षेत्र में अवतीर्ण हो रहे थे, वह समय बड़ा अशान्ति-मय था । राज्य में डकैतियों की बड़ी धूम थी । आपने शान्ति स्थापित करने के लिये बड़ा परिश्रम किया और बड़ी दिलेरी से काम किया। आपको कई बार डाकुओं का मुकाबला करना पडा । इससे आपको समय-समय पर अनेक घाव लगे। इसके पश्चात् बीकानेर दरबार ने आपको इस काम से हटाकर राज्य की ओर से वकील बनाकर दिल्ली भेजा । वहाँ भी आपने बड़ी बुद्धिमानी से काम किया । आपके कार्य्यं से दरबार साहब तथा रेसिडेण्ट दोनों ही खुश रहे। संवत् १८८४ में आपका उन घावों के कारण देहान्त हो गया जो आपको दिल्ली ही में डाकुओं का मुकाबला करते समय लगे थे । मेहता हिन्दूमलजी इस खानदान में आप बड़े बुद्धिमान, प्रतिभा सम्पन्न और ख्यातिवान पुरुष हुए। पहले पहल सम्बत् १८८४ में आप बीकानेर की ओर से वकील की हैसियत से दिल्ली भेजे गये । वहाँ आपने बड़ी ही बुद्धिमानी और चतुराई से कार्य्य किया । इस पर तत्कालीन बीकानेर नरेश महाराजा स्नसिंहजी ने खुश होकर आपको अपना दीवान नियुक्त किया और सिक्केदारी की मुहर प्रदान की। अपने नरेश की आधीनता में आप राज्य के सारे कारोबार देखने लगे । सम्बत् १८८८ में आप तत्कालीन मुगल सम्राट् के पास दिल्ली गये और सम्राट को खुशकर अपने स्वामी महाराजा रत्नसिंहजी के लिये खिलअत और हिन्दू-शिरोमणि की उपाधि लाये । इससे महाराजा साहब पर आपका बड़ा प्रभाव पड़ा और उन्होंने आपको " महाराव "9 का खिताब 'इनायत किया । मेहता हिन्दूमलजी ने बीकानेर राज्य के हित-सम्बन्धी और भी कई मार्के के काम किये । बीकानेर रियासत की ओर से भारत सरकार को प्रति साल २२ हजार रुपया फौजी खर्च के लिए दिये जाने का इकरार था । मेहता हिन्दूमल ने वहुत प्रयत्न कर यह रकम माफ करवाई। इसके अतिरिक्त मेहता साहब के सुयोग्य प्रबन्ध के कारण सरकार ने बीकानेर में अपने पोलिटिकल एजण्ट रखने की भी आवश्यकता नहीं समझी । इसी प्रकार एक समय बीकानेर और भावलपुर राज्यों के बीच सरहद्द सम्बन्धी झगड़ा खड़ा हो गया। इस झगड़े को आपने बहुत बुद्धिमानी के साथ निपटाया जिससे बीकानेर रियासत का बड़ा हित साधन हुआ । इस फैसले में बीकानेर को बड़ी ही मौके की जमीन मिली। इस जमीन में बहुत से गाँव आबाद हो गये और इस रियासत को लाखों रुपये सालाना की आमद होने लगी । १४ १०५
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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