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ओसवाल आति का इतिहास
ईसवी सन् १८४६ की ३ मईको तत्कालीन वाइसराय लॉर्ड हार्डिज से भापकी मुलाकात हुई। पाइसराय महोदय आपसे मिलकर बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने आपको खिल्लत बक्षी।
महाराव हिन्दूमल का प्रभाव राजस्थान के कई बड़े २ नरेशों पर था। सम्वत् १८९७ में जब महाराजा रत्नसिंहजी और उदयपुर के महाराणा सरदारसिंहजी लालीनाथजी के मन्दिर से वापिस आये और मेहताजी की हवेली में गोठ अरोगने के लिए पधारे तब दोनों दरवारों ने आपको मोतियों का कंठा पहना कर आपका सम्मान किया । इस वक्त महाराणा साहब ने महाराजा रखसिंहजी से कहा कि हमारी उदयपुर रियासत की भोलावन भी महारावजी को दे दी जावे। इस पर बीकानेर नरेश ने हिन्दूमलजी से कहा कि 'महाराणा साहब की बात तुमने सुनली होगी, इस पर उन्होंने जबाब दिया कि “ मैं जैसा बीकानेर की गही का सेवक हूँ वैसा ही उदयपुर की गद्दी का भी हूँ । मैं सेवा के लिये हर वक्त तैयार हूँ।"
महाराव हिन्दूमलजी बड़े प्रभावशाली पुरुष थे । उन्होंने बीकानेर राज्य की बड़ी २ सेवाएँ की । तत्कालीन बीकानेर नरेश ने बड़ी उदारता के साथ आपकी इन सेवाओं को अपने खास रुकों में स्वीकार किया है। हम एक रुक्के की नकल ज्यों की त्यों यहाँ पर उद्धृत करते हैं ।
"दसखत खास महाराव हिन्दूमल दीसी तथा म्हारो कूच सुणी ताकीदी मती करजा उठरो सारो काम रो बनौवसत कर थारो हात वसु काम कर श्रावजी ताकीदी कर काम बीगाड़े आये ना जे उठायो के सुसारो सिरे चाढ़े ताकीदी की दी तो तेने म्हारी आण के दूजा समाचार मोहतो मूलचन्द रा कागदांसु जाणसी श्री पुष्करजी व अजमेर आवजा अध बीच में मती आवजो मेनत कियाड़ी गुमाये ना थारी तो मोटी बंदगी चाकरी के पीढ़ी ताई की चाकरी के थारो म्हां ऊपर हाथ छे ऊपर हाथ माथै राख चाकरी ते बनायो ने इसी ही चाकरी कर देखाई पीढ़ी रा साम धरभी चाकर छो इसी थे चाकरी करी छे तेसु म्हें उसरावण कदे न हुसी इसी थे चाकरी करी छे अठे तो थारा बखाण हुए छे पण सुरग में देवता बखाण करसी इसी बंदगी घणीरी होई छे जेरी कठा ताई लिखां संवत् १८८६ मिती आसोज सुद १२ "
उक्त खास रुका पुरानी मारवाड़ी भाषा में है। इसका भाव यह है:-हमारे कुँच करने का समाचार सुनकर ताकीद मत करना । वहाँ के (बीकानेर-राज्य ) सारे काम का बन्दोवस्त कर तथा सारे काम को अपने हाथ में करके आना। ताकीद करके काम बिगाड़ कर मत आना। जिस काम को हाथ में लिया है उसे अच्छी तरह पूरा करना। अगर तेने जल्दी की तो तुझे हमारी सौगंध है। दूसरे समाचार मूलचंद के पत्र से जानना। श्री पुष्करजी और अजमेर में आना। अपनी की हुई मिहनत को व्यर्थ न
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