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________________ भंसाली मंसाली थाहरूशाह-लोद्रवा मंदिर के "शतदल पनयंत्र" नामक शिला लेख से, तथा भारत सरकार द्वारा प्रकाशित एपी ग्राफिया इण्डिका नामक ग्रंथ से थाहरूशाह के सम्बन्ध का निम्न वृत्त ज्ञात होता है कि ___ "प्राचीन काल में राजा सगर के पुत्र श्रीधर तथा राजधर ने जैन धर्म से दीक्षित होकर लोद्रपुर पट्टन में श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी का मंदिर बनवाया । राजा श्रीधर ने जो जैन मंदिर बनवाया था, वह प्राचीन मंदिर महम्मदगोरी के हमले के कारण लोदवा के साथ नष्ट हो गया । अतः संवत् १६७५ में जेसलमेर निवासी भणसाली गौत्रीय सेठ थाहरूशाह ने उसका जीर्णोद्धार कराया और अपने वास स्थान में भी देरासर बनवाकर शास्त्र भंडार संग्रह किया। सेठ थाहरूशाह ने लोद्रवे के मंदिर की प्रतिष्ठा के थोड़े समय बाद एक संघ निकाला, और शत्रुजय तीर्थ की यात्रा करके सिद्धाचलजी में खरतराचार्य श्री जिनराज सूरिजी से संवत् १६८१ में २४ तीर्थंकरों के १४५२ गणधरों की पादुका वहाँ की खरतर वशी में प्रतिष्ठित कराई थी।" थाहरूशाह के सम्पत्ति शाली होने के सम्बन्ध में निम्न लोकोक्ति मशहूर है कि थाहरूशाह लोद्वे में घी का व्यापार करते थे। एक दिन रूपासिया ग्राम की रहने वाली एक स्त्री चित्रावेल की एंडुर पर रखकर लोदवा में घी बेंचने आई। थाहरूशाह ने उसका घी खरीदा और तोलने के लिये उसकी मटकी से धी निकालने लगे, जब घी निकालते २ उन्हें देर हो गई और मटकी खाली नहीं हुई तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने यह सब करामात एडंरी की समझ इसे ले लिया। उस एंडुरी के प्रभाव से थाहरूसाह के पास असंख्यात द्रव्य हो गया। जिससे उन्होंने अनेकों धार्मिक काम किये। इस समय इनके परिवार में कोई विद्यमान नहीं हैं। भंसाली मेहता किशनराजजी (उर्फ मिनखराजजी) का खानदान, जोधपुर इस खानदान के पूर्वज भंसाली बीसाजी जेसलमेर के दीवान थे। ये राव चूंडाजी के समय में जेसलमेर से जोधपुर आये इन्होंने बीसेलाव तालाब बनवाया। इसके बाद नाडोजी, अखेमलजी तथा वेरीसालजी हुए। वेरीसालजी बालसमंद पर युद्ध करते हुए मारे गये। इनकी धर्मपत्नी इनके साथ सती हुई। तबसे जोधपुर के भंसाली अपने बच्चों का वहाँ मुंडन कराते हैं। इन बेरीसालजी की चौथी पीढ़ी में जगनाथजी हुए। इनके ३ पुत्र हुए जिनके नाम भंसाली मेहता तेजसी, रायसी, तथा श्रीचंदजी थे। इनमें भंसाली रायसी के पांचवो पीढ़ी में बोहरीदासजी हुए। इनके सादूलमलजी, मुलताममलजी तथा सुलतानमलजी नामक ३ पुत्र हुए। . भंसाली सुलतानमलजी लेनदेन का काम करते थे। इनके सावंतमलजी, सुखराजजी, कुशलराज जी तथा जुगराजजी नामक ४ पुत्र हुए। भंसाली कुशलराजजी संवत् १९६६ में स्वर्गवासी हुए। आपके छानराजजी, माणकराजजी, कपूरराजजी, सम्पतराजजी, सुकनराजजी, विशनराजजी तथा किशनराजजी (उर्फ मिनखराजजी ) नामक छ पुत्र हुए। इनमें से भंसाली छगनमलजी सावंतमलजी के नाम पर दत्तक गये। इनके पुत्र उम्मेदराजजी तथा पौत्र मगराजजी भंसाली हैं। भंसाली कपूरराजजी कलकत्ते में दलाली करते थे। आप इनके पुत्र सबलराजजी आवकारी विभाग में हैं। सम्पतराजजी के पुत्र कनकराजजी कलकत्ते ५७९
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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