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ओसवाल जाति का इतिहास
स्वर्गवास हुआ । बागायत के कार्य
व्यापार को जादा बढ़ाया । आपका शके १८१७ में ७२ साल की आयु में आपके पुत्र रूपचन्दजी संचेती का जन्म शके १८१२ में हुआ । आपने अपनी फर्म पर को बहुत बढ़ाया है । इस समय आपके बगीचे में २ हजार झाड़ मोसुमी के और २ हजार झाड़ संतरे के हैं । इसके अलावा १ हजार झाड़ नीबू, अंजीर और अनार के हैं। इस प्रकार आपने नवीन कार्य का साहसपूर्वक स्थापन कर अपने समाज के सम्मुख नूतन आदर्श रच्खा है । आपके बगीचे के फल हैदराबाद तथा बम्बई भेजे जाते हैं। आपके यहाँ ३ हजार एकड़ भूमि में कृषि होती है । आप बड़े मिलनसार तथा सरल स्वभाव के व्यक्ति हैं । औरंगाबाद जिले में आप सबसे बड़े कृषि तथा बागायात का काम करने वाले सज्जन हैं । सेठ बच्छराजजी का स्वर्गवास शके १८१० में हुआ। आपके भोकचन्दजी तथा जेठमलजी नामक पुत्र हुए। आप दोनों बन्धुओं के क्रमशः फकीरचन्दजी तथा माणकचन्दजी नामक पुत्र हैं। इनके यहाँ कृषि तथा बागायात का व्यापार होता है। इसी प्रकार सेठ किशनदासजी शके १८२९ में स्वर्गवासी हुए । आपके पुत्र पूनमचन्दजी तथा दलीपचन्दजी हुए । इनके यहाँ कृषि का कार्य होता है। सेठ पूनमचन्दजी के पुत्र उत्तमचन्दजी, लक्खीचन्दजी तथा पेमराजजी हैं ।
सेठ भागचन्द जोगजी संचेती, लोनार
यह परिवार बवायचा ( मारवाड़) का निवासी है। वहाँ से इस परिवार के पूर्वज सेठ जोगजी ८०/९० साल पूर्व लोनार आये । आप श्वेताम्बर जैन स्थानकवासी आम्नाय के मानने वाले सज्जन थे । आपका संवत् १९४८ में स्वर्गवास हुआ । आपके भागचन्दजी, रतनचन्दजी तथा खुशालचन्दजी नामक ३ पुत्र हुए। इनमें सेठ भागचन्दजी विद्यमान हैं ।
सेठ भागचन्दजी संचेती का जन्म संवत् १९३४ में हुआ। आप लोनार के ओसवाल समाज में प्रतिष्ठित व हिम्मत बहादुर सज्जन हैं । आपने रुई के व्यापार में बहुत सम्पत्ति कमाई तथा व्यय की । आपके पुत्र पुखराजजी तथा भीकमचन्दजी हैं। पुखराजजी की वय १९ साल की है। आपके यहाँ " भाग - चन्द रतनचन्द" के नाम से साहुकारी, रुई तथा कृषि का काम होता है। सेठ रतनचन्दजी के पुत्र नथमल जी १२ साल के हैं । यह परिवार कोनार तथा आसपास के ओसवाल समाज में प्रतिष्ठित समझा जाता है।
भंसाली
मंसाली गौत्र की उत्पत्ति - संवत् ११९६ में लोद्रपुर पट्टन में यादव कुल भाटी सगर नामक राजा राज करते थे । उनके कुलधर, श्रीधर तथा राजधर नामक ३ पुत्र थे । राजा सगर ने जैनाचाय्यं जिनदत्तसूरिजी के उपदेश से अपने बड़े पुत्र कुलधर को तो राज्य का स्वामी बनाया, तथा शेष २ को जैन धर्म अंगीकार कराया । इन बंधुओं ने चिंतामणि पार्श्वनाथजी का एक मंदिर बनवा कर जैना चार्य्यं से उसकी प्रतिष्ठा करवाई' भंडार की साल में रहने के कारण इनकी गौत्र "भंडसाली" हुई। आगे चलकर इन्हीं श्रीधरजी की अठारवीं पीढ़ी में भंसाली थाहरूशाह नामक एक बहुत प्रतापी पुरुष हुए।
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