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संचेती
पह फर्म चिगनपेठ में मातबर और प्रतिष्ठित मानी जाती है। आपके पुत्र चन्दनमलजी बाल्यका में ही स्वर्गवासी होगये। इस फर्म की ओर से दान धर्म और सार्वजनिक कामों में सहायताएँ दी जाती है।
सेठ बालचन्दजी संचेती का परिवार, मोमासर करीब २५० वर्ष पूर्व इस परिवार के पूर्व पुरुष डिगरस नामक स्थान से चलकर मोमासर नामक स्थान पर आये। आगे चलकर इनके वंश में कुंभराजजी हुए। कुंभराजजी के रधुनाथजी, ताजसिंहजी, शेरसिंहजी, नथमलजी और सतीदासजी नामक पाँच पुत्र हुए। भाप भाइयों ने सम्वत् १९०४ में मेसर्स सतीदास उम्मेदम के नाम से कलकत्ते में फर्म स्थापित किया। भाप लोगों की व्यापार कुशलता से फर्म चल निकली और पूर्णिया, इस्लामपुर, पटनागोला आदि स्थानों पर भापकी शाखाएँ कायम हो गई। संवत् १९५१ में आप सब भाई अलग २ हो गये।
. सेठ नथमलजी के पुत्र बालचन्दजी ने अलग होते ही बालचन्द्र इन्द्रचन्द्र के नाम से व्यापार करना प्रारम्भ किया। इसमें भापको बहुत सफलता हुई। आपका मोमासर की पंच पंचायती में अच्छा सम्मान था। आपके इन्द्रचन्दजी, डायमरूजी, सुगनमलजी और हीरालालजी नामक चार पुत्र हैं। भाजकल आप चारों भाई अलग २ हो गये हैं।
सेठ इन्द्रचन्द्रजी "बालचन्द इन्द्रचन्द" के नाम से व्यापार करते हैं। भाप पुद्धिमान् एवम् समझदार सजन है। आपके हाथों से इस फर्म की और भी तरकी हुई है। भाप धर्म में बड़े पक्के हैं। भापके इस समय डालचन्दजी और पुनमचन्दजी नामक दो पुत्र हैं। सेठ डायमलजी और सुगनमलजी दोनों भाई भी बड़े योग्य थे मगर आपका थोड़ी ही उम्र में स्वर्गवास हो गया। डायमलजी के कोई पुत्र न था और सुगनमलजी के गोविन्दरामजी एवं केवलचन्दजी नामक दो पुत्र हैं। गोविन्दरामजी सेठ डायमलजी के यहाँ दत्तक गये हैं। वर्तमान में आप दोनों ही भाई सुगनमल गोविन्दराम के नाम से चलानी, जूट और जमीदारी का काम करते हैं। आपकी दुकान का पता ४२ आर्मीनियन स्ट्रीट है। भाप लोगों ने मोमासर में अंग्रेजी स्कूल के लिये मकान बनवाकर सरकार को दिया है। यह परिवार जैन तेरापंथी सम्प्रदाय का अनुयायी है।
सेठ रूपचन्द छगनीराम संचेती, बैजापुर (निजाम) इस परिवार का मूल निवास डाबरा (जोधपुर स्टेट) है। आप स्थानकवासी आम्नाय के सज्जन हैं । देश से लगभग १७५ वर्ष पूर्व इस परिवार के पूर्वज व्यापार के लिये निजाम स्टेट के बैजापुर नामक स्थान में आये । यहाँ माने के बाद तीसरी पीढ़ी में सेठ जयरामजी संचेती हुए। भापके हाथों से इस परिवार के व्यापार तथा सम्मान को बहत तरक्की मिली। आपने भासपास के भोसवाल समान में भच्छा नाम पाया।
सेठ जयरामदासजी के धनीरामजी, बच्छराजजी तथा किशनदासजी मामक पुत्र हुए। इन तीनों भाइयों का व्यापार शके १७९९ में अलग हुआ। सेठ छगनीरामजी ने अपने पिताजी के बाद