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________________ ( ४२ ) (१०) किसी भी सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, सांसारिक या कानूनी व्यापारमें साधु भाग नहीं लेते। नैतिक एवं आत्मिक उन्नतिजनक कार्यमें ही वे अपना समय बिताते हैं । यदि कोई मनुष्य, साधुओंको कोई प्रकारका कष्ट पहुंचाता हो तो साधु उसके विरुद्ध या निजकी रक्षाके लिये राज-दरबार, थाना कचहरी, पुलिसमें इत्तला नहीं देते । स्वयं किसी मामले में साक्षी नहीं दे सकते और न दूसरेसे इस तरहके किसी कार्य में सहयोग ले सकते हैं। (११) तेरापंथी साधुओंके कोई मठ, मन्दिर, स्थान आदि नहीं हैं। वे तो गृहस्थोंके घरों में उनकी इजाजतसे रहते हैं। (१२) तेरापंथी साधु साध्वी साधारणतया उच्च कुलके महाजन सम्प्रदायसे ही दीक्षित होते हैं । उन्हें आजीवन आचार्यको आज्ञानुसार चलना पड़ता है । प्रत्येक कनिष्ट साधुको उनके ज्येष्ठ साधुकी भी आज्ञा माननी पड़ती है। कनिष्ठता व ज्येष्टता उम्रके अनुसार नहीं किन्तु दीक्षा क्रमके अनुसार ही मानी जाती है । (१३) माता-पिता गुरुजन तथा पति-पत्नीकी एवं अन्य निकट परिजनकी लिखित आज्ञा बिना किसीको भी तेरापंथी सम्प्रदायमें दीक्षा नहीं दी जाती। तीन वराग्य, संयम-निर्वाह-सामर्थ्य आदि योग्यता देखकर दीक्षित होनेकी दृढ़ लालसा तथा बहुत अरज करने पर आचार्य महाराज योन्य दीक्षार्थीको जनसाधारणके सामने दीक्षा देते हैं। जैनधर्मके मुख्य मुख्य सिद्धान्तोंसे सुपरिचित एवं वैराग्य भावनावालेको ही नव वर्षसे अधिक उम्र में दीक्षा दी जाती है। (१४) उपरोक्त नियमोंके अतिरिक्त आचार्यों को बनाई हुई मर्यादा व नियमोंका पालन समस्त तेरापंथी साधु साध्वियोंको करना पड़ता है। किसी साधु साध्वीके नियम भङ्ग करनेपर आचार्य महाराज उसे उपयुक्त दण्ड प्रायश्चित्त देते हैं। दण्ड स्वीकार न करनेसे उसे संघमें सामिल नहीं रखा जाता। नियमानुवर्तिताके प्रभावसे ही प्रायः ५०० साधु साध्वी पंजाबसे
SR No.032674
Book TitleJain Shwetambar Terapanthi Sampraday ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Terapanthi Sabha
PublisherMalva Jain Shwetambar Terapanthi Sabha
Publication Year
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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