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________________ निरन्तर ६ दिनकी तपस्या कर चुकने पर तपस्वीको तपस्था क्रम बदलना पड़ता है और फिर उल्टे चलकर अन्तमें एक उपवास तक आकर तपस्याका अन्त करना होता है। जो इस तपस्याको चार बार कर चुकता है वह बहुत ही उग्र तपस्वी समझा जाता है । तीन श्रेणियोंका वर्णन ऊपर आ चुका है। चौथी श्रेणीमें पारणोंके दिन सिर्फ उड़दके बाकले और जल लेना पड़ता है। स्वामी चुन्नीलालजीने तीन श्रेणियों तक इस तपस्याको पूरा कर लिया, परन्तु चौथी श्रेणीको पूरा करनेके पहिले ही उनका देहान्त हो गया। तेरापंथियोंके एक अन्य साधु हुलासमलजी महाराजने चतुर्थ, प्रथम तथा तृतीय श्रेणी तक इस तपस्याको पूरा किया परन्तु द्वितीय श्रेणीका तप आरम्भ न कर सके। ३५ वर्षके साधु जीवनमें साधु चुन्नीलालजी के ८००० दिन उपवास के अर्थात् लगभग २२ वर्ष तपस्याके रहे। अब स्वामी रणजीतमलजी तथा आशारामजीकी तपस्याओंका वणन देकर इस प्रकरणको समाप्त करेंगे। स्वामी रणजीतमलजी का जन्म सं० १६१८ में हुआ था। वे मेवाड़के पुर प्राममें जन्मे थे और चौथमलजी बनौलियाके पुत्र थे। चौथमलजीने आचार्य श्री मघराजजी स्वामीके हाथसे दीक्षा ली थी। खुद चौथमलजी भी उग्र तपस्वी थे। उन्होंने १६५४ में छः महीनों तककी तपस्या की। उनका स्वर्गारोहण सं० १९५६ में हुआ। साधु रणजीतमलजी भी योग्य तपस्वी निकले। सं० १६७४ से आरम्भ कर उन्होंने कभी लगातार दो दिन आहार नहीं लिया। वे बड़े ही विनयशील तपस्वी थे। उनका अन्तिम उपवास निरन्तर ६० दिनका था। आषाढ़ सुदी २ सं० १६८९ के दिन वर्तमान आचार्य श्री श्री कालुरामजी महाराज जब सरदार शहर पहुंचे उस समय रणजीतमलजीने पारण किया था, एवं उसो पारणेके दिन ही आचार्य महाराज से संथारा करनेकी आज्ञा देनेकी विनती की। परन्तु पूज्य जी महाराजने उन्हें संथारेकी आज्ञा न दी । निराश न होकर स्वामी रणजीतमल
SR No.032674
Book TitleJain Shwetambar Terapanthi Sampraday ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Terapanthi Sabha
PublisherMalva Jain Shwetambar Terapanthi Sabha
Publication Year
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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