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________________ [ ३१ ] अध्याय प्रधान विषय पृष्ठाङ्क से अपुत्रा विधवा स्त्री दत्तक ले ( २४३-२४४)। जो निकट सम्बन्धी दो या दो से अधिक सन्तानवाला हो उसका कोई-सा भी पुत्र अपने लिये दत्तक लिया जा सकता है (२४६)। यदि कोई-सा भी लूला, लङ्गड़ा, गूंगा, बहरा, अन्धा, काना, नपुंसक या कुष्ठ का दागी हो तो उसे लेना न लेना बराबर है (२४७)। यदि ऐसे विकलाङ्ग दत्तक लिये गये तो मन्त्र क्रिया आदि का . लोप हो जाता है (२४८-२५२)। यदि समाज के सभी प्रतिष्ठित व्यक्ति एवं परिवार के भाई-बन्धु जिसके लिये आज्ञा दें तो वह दत्तक सफल होता है (२५३-२५७)। अपुत्रक का दत्तक लेना दौहित्र न उत्पन्न हो तब तक प्रामाणिक है बाद में यदि दौहित्र पैदा हो जाय तो वह अप्रामाणिक है। मनु ने दौहित्रों में बड़े छोटे में किसी एक को लेने का विधान बताया है ( २५८-२६३)। हां, ३ या ५, ६ पुत्रों में सबसे ज्येष्ठ और सबसे कनिष्ठ को छोड़ किसी एक को लिया जा सकता है ( २६४-२६६ )। यदि मोह से ज्येष्ठ को दत्तक ले लिया गया तो मौञ्जी विवाह विधि के बाद वह अपने सगे पिता का ही पुत्र होने का अधिकारी है दूसरे का नहीं (२६७)। ऐसा दत्तक
SR No.032671
Book TitleSmruti Sandarbh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaharshi
PublisherNag Publishers
Publication Year1988
Total Pages768
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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