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अध्याय
पृष्टांक
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प्रधान विषय करते हैं (५६-६१)। अनेक प्रकार के दान और वृक्षादि लगाने और जिन श्रेष्ठ कर्मों से मनुष्य
स्वर्ग को जाता है उनका विस्तारपूर्वक वर्णन । ६ सर्वदानफलवर्णनम्
१९५८ सम्पूर्ण प्रकार के दानों का फल और कैसे ब्राह्मण को दान देना चाहिये । दानपात्र ब्राह्मण के लक्षण तथा तपस्या का फल (१-४)।
ऐसे ब्राह्मणों के लक्षण जिन्हें दान देने से मनुष्य दुःखों से छूट जाता है। यथाके शान्तदान्ताश्च तथाभिपूर्ण
___ जितेन्द्रियाः प्राणिवधेनिवृत्ताः । प्रतिग्रहे सङ्कुचिता गृहस्था
___ स्ते ब्राह्मणास्तारयितुं समर्थाः ॥१७६॥ सत्पात्र और पूज्य ब्राह्मण के शुभलक्षणब्राह्मणो यस्तु मद्भत्तो मद्याजीमत्परायणः ।
मयि सन्यस्त कर्मा च स विप्रस्तारयिष्यति १८१ ७ वृषदालमहत्त्ववर्णनम्
१९७५ वैशम्पायन ने पूछा कि दान धर्म को सुनने पर