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________________ [ ३१ ] अध्याय प्रधानविषय पृष्ठा ३ का अभ्यास बताकर जीवन यात्रा का श्रेय नीचे लिखे श्लोक में स्पष्ट किया हैन्यायागतधनस्तत्वज्ञाननिष्ठोऽतिथिप्रियः । श्राइकृत् सत्यवादी च गृहस्थोऽपि हि मुच्यते ॥ न्याय से आये हुए धन से जीवन बिताने वाला, . तत्त्वज्ञान में जिसको निष्ठा हो, अतिथि सत्कार तथा श्राद्ध करनेवाला, सत्यवादी गृहस्थी भी इस जन्म मरण से छूट जाता है (६७.२०५)। ३ प्रायश्चित्तप्रकरणवर्णनम् १३२३ पापी महापापी कर्म के अनुसार नरक भोगने के अनन्तर जब मनुष्य योनि में आते हैं तब ब्रह्महत्यारा जन्म से ही क्षय रोगी होता है। परखी को हरनेवाला, ब्राह्मण केधन को हरने वाला ब्रह्मराक्षस होता है। जो पाप को समझने पर भी प्रायश्चित्त नहीं करते हैं वे रौरव नरक में जाते हैं। इस प्रकार महानरकों का वर्णन आया है। महा पापी चार हैं-ब्रह्म हत्यारा, सोने को चुराने वाला, गुरु की स्त्री से गमन करने वाला और
SR No.032669
Book TitleSmruti Sandarbh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaharshi
PublisherNag Publishers
Publication Year1988
Total Pages744
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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