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[५७ ] अध्याय प्रधानविषय
पृष्ठाङ्क में रहता है [३८३] । विभिन्न प्रकार के वृक्ष और पुष्पवाटिकायें अपने हाथ से लगाने से स्वर्ग गति
का माहात्म्य है [ ३८६ ] ११ विनायकशान्तिविधि वर्णनम् । ६०३
शान्ति प्रकरण यथा-विनायक शान्ति का प्रकरण है जबतक विनायक शान्ति नहीं होती तबतक ये लिखित दुःस्वप्न दर्शन होते हैं यथा रात्रि में निशाचर, जलावगाहन इत्यादि [१-८]। इसके बाद उसके स्नान का वर्णन, सफेद सरसों से स्नान ब्राह्मण की सहायता से करना जोसम संख्या के हो यथा ४ हो या ८ हो। दुर्वा से. उपर्युक्त मन्त्रों से अभिषेक करे [६-२१]। हवन का विधान
[२२-२५]। भगवती पार्वती का स्तवन मन्त्र . (२६-३०) आचार्य दक्षिणा इत्यादि (३१-३३)। ११ ग्रहशान्तिविधि वर्णनम।
६०६ । प्रहशान्ति–प्रहमण्डप, ग्रहों के जप मन्त्र, ग्रहों
का पूजोपचार, ग्रहदान आदि नवग्रह का पूजन एवं प्रतिवर्ष का माहात्म्य (३४-८५)।