________________
[ २५ । प्रधान विषय
अध्याय
पृष्ठाह
तीन लिङ्ग ये उत्पन्न हुए। वेद शास्त्र में सब जगह ये तीन मात्रा आती हैं। इस ओंकार रूपी अक्षर के धन का माहात्म्य आदि अगले अध्याय में बताया गया है (७-३३)।
गायत्रीमन्त्र पुरश्चरण वर्णनम् ।
७१४
इसमें गायत्री मन्त्र का पुरश्चरण, गायत्री का उच्चारण, गायत्री प्रकृति और ओंकार को पुरुष और इनके संयोग से जगत् की उत्पत्ति बताई गई है। गायत्री के २४ अक्षरों को २४ तत्त्व बताया है (१-१२)। वेदों से गायत्री की उच्चता (१३-१७)। एक एक अक्षर में एक एक देवता बताये हैं (१८-२५)। एक एक अक्षर किस किस अङ्ग में रखना बताया गया है (२६-३६) । गायत्री जप करने का स्थान और जपने की माला का विशदीकरण किया गया है (३७-५२)। प्राणायाम का माहात्म्य बताया गया है (५३-५५)। उपांशु जप
और मानस जप का वर्णन किया गया है (५६-५८)। सब यज्ञों से जप यज्ञ की श्रेष्ठता बताई है (५६-६३)। जप कैसा और किस मुद्रा और किस रीति से करना चाहिये बताया है (६४-७० )।