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[ ७० ] प्रधान विषय
अभ्याय
पृष्ठाङ्क
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अनुचित व्यवहारफलम् ।
६१६ पञ्चत्रिंशत् (पैंतीस प्रकार से मरा हुआ पितृगति क्रिया को नहीं पाता है। आकस्मिक मृत्यु बिजलीपात इनको श्राद्ध में लेपभुज कहा है (१-४)। अनायास मृतक की गति न होने से ये प्रेतादि योनियों में जाते हैं और बालकों का हरण होता है (४-६)। अपमृत्यु से जो मरते हैं उनके कारण कौन पाप है, जैसे जो कुमारी गमन करे उसे व्याघ्र मारता है, जो किसी को विष देता है उसे सर्प काटता है, राजा को मारनेवाले को हाथी से मृत्यु होती है, मित्र द्रोही, बक वृत्ति वाले की मृत्यु भेड़िया से होती है (६-१६)।
अगति प्रायश्चित्त वर्णनम् । उन उन पापों का प्रायश्चित्त दिखाया है (१७)। अपघात करनेवालों की नारायणबली का विधान किया है (२६)। इन पापों की शुद्धि के भिन्न भिन्न प्रकार के दान बताये हैं (३०-५१)। ॥ स्मृतिसन्दर्भ प्रथम भाग की विषय-सूची समाप्त ॥
॥ शुभम् ॥