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[ ६८ ] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क ३ प्रकीर्णरोगाणां प्रायश्चित्तम्
६०७ प्रकीर्ण रोगों का प्रायश्चित्त (१-६)। सुरापान आदि अभक्ष्यभक्षण का प्रायश्चित्त (७-१५)। विष दाता, सड़क तोड़नेवाले को रोग और प्रायश्चित्त । गर्भपात करने से यकृत प्लीहा आदि रोग होते हैं उनके प्रायश्चित्त, जल धेनु और अश्वत्थ का पूजन और दान करना ( १६-१६)। दुष्ट्रवादी का अंग खण्डित हो जाता है (२०-२१)। सभा में पक्षपात करनेवाले को पक्षाघात रोग, उसका प्रायश्चित्त (२२)।
४ कुलध्वंसकस्य, स्तेयस्य च प्रायश्चित्तम् । ६०६
कुल को नाश करनेवाले को प्रमेह की बीमारी और उसका निदान (१)। ताम्बा, कांसा, मोती आदि चोरी करने से जो रोग होते हैं उसका वर्णन और प्रायश्चित्त (२-७) । दूध दही आदि चोरनेवाले को रोग उसका निदान (८-१०)। मधु चोरी करनेवाले को बीमारी और उसका प्रायश्चित्त (११-१२)। लोहा की चोरी से रोग की उत्पत्ति और उसका प्रायश्चित्त (१४)। तेल की चोरी से रोग और प्रायश्चित्त (१५)। धातुओं के चोरने से रोग और उसका प्रायश्चित्त तथा वन, फल, पुस्तक, शाक, शय्या छोटी वस्तु