________________
[ ५१ ] ऽध्याय प्रधानविषय
पृष्ठाङ्क योनि, अति पातकों को स्थावर, और महापातकी को कृमि, उपपातकी को जलज योनि और जातिभ्रंश को जलचर योनि इत्यादि। जो दूसरे के द्रव्य को हरण करता है उसे
अवश्य सर्प की योनि प्राप्त होती है। ४५ नरकोत्तीर्ण तिर्यग्योन्योर्मनुष्ययोनि वर्णनम्- ४७४
पापकर्मणां कर्मविपाकेन मनुष्याणां लक्षणानि ( चिन्ह ) वर्णनम्
৪৩ नरक भोगने के बाद और तिर्यक् योनि भोगने के बाद जब मनुष्य योनि में आता है तो उसके क्या निशान है। यथाअतिपातकी कुष्ठी, ब्रह्महत्यारा यक्ष्मारोगी, गुरुपत्नी गामी
दुष्कर रोग से ग्रसित रहते हैं । ४६ कृच्छादि व्रतविधान वर्णनम्---
४७६ कृच्छ्रव्रत-तीन दिन तक भोजन नहीं करना । सिरसे स्नान करना इसी तरह पर प्राजापत्य–तप्तकृच्छ्र, शीतकृच्छ्र, कृच्छ्रातिकृच्छ, उदककृच्छ्र, मूलकृच्छ, श्रीफलकृच्छ्र, पराक, सान्तपन, महासान्तपन, अति सान्तपन, पर्णकृच्छ्रइनका विधान आया है।