SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ४६ ] अध्याय प्रधानविषय पृष्ठाङ्क ३३ पुंसां के ते शत्रव स्तद्विचार वर्णनम्- ४६६ काम, क्रोध, लोभ ये तीन मनुष्य के शत्रु हैं और नरक के द्वार बताये गये हैं। ३४ मात्रादि गमन पातक परामर्श वर्णनम मातृ गमन, दुहिता गमन, स्वसा गमन करनेवाले अति पातकी होते हैं। उन्हें आग में जलाना चाहिये। ३५ महापातक परामर्श वर्णनम्- ४६७ महापातक ब्रह्महत्या, सुरापान, सुवर्ण चोरी और गुरुवार गमन और एक वर्ष तक इनके साथ रहता है इनका वर्णन है ३६ के ते ब्रह्महत्या समाः पातकाः- ४६७ इसमें झूठी गवाही देनेवाला, गर्भघाती आदि के पाप बत लाये हैं । जोमहापातक के समान पाप होते हैं वे बतलाये हैं। ३७ उपपातक वर्णनम् ४६८ उपपातक-झूठा कहना, वेदों की और गुरु की निन्दा सुनना इत्यादि उपपात बतलाये हैं। ३८ सकतन्यता जातिभ्रंशकरण प्रायश्चित्त वर्णनम ४६६ जातिभ्रंशकरण-जैसे पशु में मैथुन करना इत्यादि।
SR No.032667
Book TitleSmruti Sandarbh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaharshi
PublisherNag Publishers
Publication Year1988
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy