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[ ४७ ] अध्याय प्रधानविषय
पृष्ठाक विवाह का निषेध । माता से पंचम और पिता से सप्तम कुल में विवाहग्राह्य है। स्त्री के लक्षण और आठ प्रकार के .
विवाह । अन्तिम में ब्राह्म विवाह का माहात्म्य । २५ स्त्रीणां संक्षिप्तधर्म वर्णनम्
४५५ इसमें संक्षिप्त से त्रियों के धर्म बताये हैं। २६ अनेक पत्नीत्वे सति स्वधर्माद्यस्त्री प्राधान्य वर्णनम्
४५६ जिसकी सवर्णा बहुभार्या हो तो वह धर्म काम ज्येष्ठ पत्नी से करे। हीन जाति की स्त्री से विवाह करने पर उससे उत्पन्न
लड़के से दैव कार्य और पितृकार्य नहीं हो सकता। २७ निषेकादुपनयनपर्यन्तदशसंस्कारवर्णनम्- ४५७
गर्भाधान, पुंसवन संस्कार आदि का वर्णन- उपनयन ब्राह्मण को आठवें, क्षत्रिय को ग्यारहवें और वैश्य को बारहवें
वर्षे में करना चाहिये। २८ गुरुकुले वसन् ब्रह्मचारिणां सदाचार वर्णनम्- ४५८
इसमें ब्रह्मचारी के नियम, गुरुकुल में रहना, गुरु की आज्ञा पर चलना, वेदों को पढ़ना इत्यादि वर्णन किया गया है।