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अध्याय
[ ३८ ] प्रधानविषय
पृष्ठाङ्क नियम की अपेक्षा यम का सेवन (४७)। नियम (४६)। जिनको उद्देश्यकर स्नान किया जाता है उसका फल (५०-५१) । पुत्र को पिता का गया श्राद्ध करना चाहिये, गया श्राद्ध का माहात्म्य (५२-५८)। आहार शुद्धि, स्थान शुद्धि, वस्त्र शुद्धि आदि का निर्देश (५६-८१)। सूतक आशौच आदि का प्रायश्चित्त (८३-१११)। कृच्छ्र, सान्तपन, चान्द्रायण व्रत का विधान (१११-१३५)। स्त्री को जप व्रत का निषेध केवल पति परायणता (१३५-१३८)। लोह पात्र में भोजन करने से पतित। ( १५२ )। भिक्षुक की परिभाषा (१६५)। महापातकियों की गणना (१६६)। शुद्धिप्रकरणम्
.३६७ . विभिन्न पापों का प्रायश्चित्त और शुद्धि का पृथक् वर्णन (१६७-२०८)।.
शुद्धिस्पर्शादि प्रायश्चित्तम् कृच्छ्र व्रत और शोच के विभिन्न प्रकार (२०६-२२६ )। प्रायश्चित्तम्
३७३ चाण्डाल का जल पीने से पञ्चगव्य से शुद्धि ( २३२ )। जल शुद्धि का वर्णन ( २३७)।
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