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________________ पृष्ठाङ्क १७३ [ २२ ] अध्याय प्रधानविषय न्छनीय है। स्त्री की रक्षा से धर्म और सन्तान की रक्षा होती है (१-३५ )। पुत्रं प्रत्युदितं सद्भिः पूर्वजैश्च महर्षिभिः । विश्वजन्यमिमं पुण्यमुपन्यासं निबोधत ॥ भर्तुः पुत्रं विजानन्ति श्रुति द्वैधं तु भर्तरि । आहुरुत्पादकं केचिदपरे क्षेत्रिणं विदुः॥ क्षेत्रभूता स्मृता नारी बीजभूतः स्मृतः पुमान् । क्षेत्रबीजसमायोगात्संभवः सर्वदेहिनाम् ।। ६ स्त्रीधर्मपालन वर्णनम् नियोग का निर्णय (५८-६३)। नियोग उसका ही होगा जिसका वाक्य दान करने पर भावी पति स्वर्गत (मरजाय) हो जाय । विवाह में कन्या की अवस्था और वर की अवस्था का वर्णन और विवाह काल (६४-६६)। स्त्री-पुरुष धर्म का वर्णन (१०२-१०३) विवाह रति का धर्म बताया है। ६ दायभाग वर्णनम् १७६ दाय विभाग की सूची और दाय विभाजन का काल (१०४)। ६ सम्पत्तिश्राद्धयोरधिकारित्व वर्णनम् वणनम्--- १८१ अपुत्रक का धन दौहित्र को (१३१)। कन्या को पुत्र समझकर धन देने का निश्चय होने के अनन्तर यदि औरस पुत्र हो जाय तो धन विभाग का निर्णय (१३४)।
SR No.032667
Book TitleSmruti Sandarbh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaharshi
PublisherNag Publishers
Publication Year1988
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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