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[ २२ ] अध्याय
प्रधानविषय न्छनीय है। स्त्री की रक्षा से धर्म और सन्तान की रक्षा होती है (१-३५ )।
पुत्रं प्रत्युदितं सद्भिः पूर्वजैश्च महर्षिभिः । विश्वजन्यमिमं पुण्यमुपन्यासं निबोधत ॥ भर्तुः पुत्रं विजानन्ति श्रुति द्वैधं तु भर्तरि । आहुरुत्पादकं केचिदपरे क्षेत्रिणं विदुः॥ क्षेत्रभूता स्मृता नारी बीजभूतः स्मृतः पुमान् ।
क्षेत्रबीजसमायोगात्संभवः सर्वदेहिनाम् ।। ६ स्त्रीधर्मपालन वर्णनम्
नियोग का निर्णय (५८-६३)। नियोग उसका ही होगा जिसका वाक्य दान करने पर भावी पति स्वर्गत (मरजाय) हो जाय । विवाह में कन्या की अवस्था और वर की अवस्था का वर्णन और विवाह काल (६४-६६)। स्त्री-पुरुष धर्म का
वर्णन (१०२-१०३) विवाह रति का धर्म बताया है। ६ दायभाग वर्णनम्
१७६ दाय विभाग की सूची और दाय विभाजन का काल (१०४)। ६ सम्पत्तिश्राद्धयोरधिकारित्व वर्णनम्
वणनम्--- १८१ अपुत्रक का धन दौहित्र को (१३१)। कन्या को पुत्र समझकर धन देने का निश्चय होने के अनन्तर यदि औरस पुत्र हो जाय तो धन विभाग का निर्णय (१३४)।