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[ १६ ] अध्याय प्रधानविषय
पृष्ठाङ्क आयु के द्वितीय भाग यौवनावस्था ५० वर्ष की उम्र तक
गृहस्थ में रहे (१६६)। ६ वानप्रस्थाश्रम वर्णनम्
१०१ वानप्रस्थाश्रम जब पुत्र का पुत्र अर्थात् पौत्र हो जाय तब वन में निवास करेगृहस्थ में नरहे (१)। वानप्रस्थाश्रमी के नियम (२)। मुन्यन्न शाक-पात से हवन करने का निर्देश (५)। वानप्रस्थ के रहन-सहन के नियम (६-३२)। आयु के तृतीय भाग
समाप्त कर सन्यासाश्रम की ओर लगने का निर्देश (३३)। ६ सन्यासाश्रम वर्णनम्
१०४ सन्यास का विधान (४०)। गृहस्थाश्रम में न्याय धर्म से जीवन यापन की श्रेष्ठता (८६) ब्राह्मण को सन्यास का धर्म (६६)। ७ राज्यशासन धर्म वर्णनम
राज्यसत्ता, शासन सत्ता का वर्णन, राजा अर्थात् शासक के आचरण का निर्देश (१८)। राजदण्ड की आवश्यकता (१६-२०)। शासक का विनयाधिकार (३५-४४)। शासक के दस कामज दोष और आठ क्रोध से उत्पन्न होनेवाले दोषों से वचने का निर्देश (४५-४७)। सचिवों की योग्यता और उनके साथ राज्यकार्य के परामर्श की विधि (५४)। राज दूत (६६) दुर्ग निर्माण (७०)। शत्रु से युद्ध का वर्णन (६०)। सष्ट्र