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अध्याय
[ १६ ] प्रधानविषय
पृष्ठाङ्क २ ब्रह्मचय वर्णनम्
देश और परम्परा के अनुरूप आचार (१८)। द्विजातियों के संस्कार के समय का वर्णन; गर्भाधान से उपनयन तक
दस संस्कार (२६-७७)। २ कर्तव्याकर्तव्य वर्णनम् -
सन्ध्या और गायत्री का महत्व वर्णन (श्लोक १०१-१०४ )। स्वाध्याय की विधि ( १०७-११५)। विद्या का फल किस अधिकारी को होता है (१५६-१६२) । विद्यार्थी और ब्रह्मचारी केनियम ( १७३-२२१)। ३ स्नातक विवाहकर्म वर्णनम्
- ३५ विद्याभ्यास का काल (१-२)। विवाह का प्रकरण और कन्या के लक्षण (४-१६ ) । विवाह के भेद, राक्षस, आसुर, पैशाच और गान्धर्व चार असत् विवाह तथा ब्राह्म, देव, आप, प्राजापत्य इन चार सद्विवाहों का वर्णन (२१-३६ ) । इनका विस्तार (४० तक)। पाणिग्रहण संस्कार सवर्णों के ही साथ होसकता है असवर्ण के साथ नहीं (४३)। अमृतुकाल में सहवास करने से गृहस्थ होने पर भी ब्रह्मचारी संज्ञा (४५-५०)। स्त्री का सम्मान करने के लिये आर्य संस्कृति का विकास (५६-६२)।