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महेसादि ६ पुत्रों को प्रतिबोध दे कर भण्डारी बनाया मूल गच्छ खरतर है। ... कसौटी-पं. गौरीशंकरजी ओझा ने राजपूताना का इतिहास में लिखा है कि वि. सं. १०२४ में राव लाखण शाकम्भरी (सांभर) से नाडोल आकर अपनी राजधानी कायम की फिर समझ में नहीं आता है कि यतिजी ने यह सफेद गप्प क्यों हांकी होगी कहाँ राव लाखण का समय विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी और कहां भद्रसूरि का समय पंद्रहवीं शताब्दी ? क्या भण्डारी इतने अज्ञात हैं कि इस प्रकार गप्प पर विश्वास कर अपने इतिहास के लिए चार शताब्दी का खून कर डालेगा ? कदापि नहीं
३–संघी-वि. सं. १०२१ में आचार्य सर्व देवसूरि ने चन्द्रावती के पास ढेलड़िया ग्राम में पँवारराव संघराव आदि को प्रतिबोध देकर जैन बनाये संघराव का पुत्र विजयराव ने एक करोड़ द्रव्य व्यय कर सिद्धगिरि का संघ निकाला तथा संघ को सुवर्ण मोहरों की लेन दी और अपने ग्राम में श्री पार्श्वनाथजी का विशाल मंदिर बनवाया इत्यादि । संघराव की संतान संघी कहलाई।
"खरतर-यति रामलालजी महा० मुक्ता० पृष्ट ६९ पर लिखा है कि सिरोही राज में ननवाणा बोहरा सोनपाल के पुत्र को सांप काटा जिसका विष जिनवल्लभसूरि ने उतारा वि० सं० १९६४ में जैन बनाया मूल गच्छ खरतर-"
कसौटी-जिनवल्लभसूरि के जीवन में ऐसा कहीं पर भी नहीं लिखा है कि उन्होंने संघी गौत्र बनाया दूसरा उस समय ननवाणा बोहरा भी नहीं थे कारण जोधपुर के पास दस मील पर ननवाण नामक प्राम है विक्रम की पंद्रहवीं शताब्दी में वहां से