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उद्धारकों के विषय में ऐसा एक भी उदाहरण उपलब्ध नहीं होता है। इतना ही क्यों पर यदि सच पूछा जाय तो नामधारी किया उद्धारकों ने ही चैत्यवासियों को निर्मूल करने में अपना पूर्ण सहयोग दे शासन को बड़ी भारी हानी पहुँचाई है जितनी कि स्वयं चैत्यवासियों ने भी नहीं पहुँचाई । मेरे इस कथन का कोई व्यक्ति उल्टा अर्थ कर यह न समझ ले कि चैत्यवास ही अच्छा और क्रिया उद्धार करना बुरा है किन्तु हाँ किसी आपत्ति के समय यदि चैत्यवास के विकृत रूप से शासन को कुछ हानि, भी हुई हो तो उसे सुधारना चाहिये न कि शासन के स्थंभ भूत चैत्यवासियों को ही उखाड़ फेंकना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से तो शासन का कोई हित नहीं प्रत्युत अहित ही सिद्ध हुआ है जैसे एक वृक्ष अनेक प्राणियों का आधार भूत है परन्तु कोई दिन प्रतिकूल हवा पानी के कारण उनके बुरे फलों से कोई हानि भी हो गई हो तो क्या उस वृक्ष को ही काट फेंकने में बुद्धिमत्ता है ? ( नहीं ), क्योंकि वृक्ष निर्मूल होने से अब कभी उस से सुफलों की आशा नहीं रहेगी, यही हाल चैत्यवासियोंको निर्मूल करने से हुआ है और आज हम उस स्थिति पर आ पहुँचे हैं कि हमारा कहीं स्थान भी नहीं है ।
चैत्यवासी शासन रक्षक थे उस समय का इतिहास देखने से ज्ञात होता है कि उन्होंने हजारों कठिनाईयों को सहन करते हुए भी जैन-धर्म को अपने कंधों पर सुरक्षित रखा | देखिये- उस समय एक तो बारंबार दुष्काल का पड़ना । दूसरा अनेक विधर्मियों का जैन-धर्म पर सङ्गठित आक्रमण करना और उन्हों को दबाने के लिए उन्हों के सामने मोर्चा बाँध खड़े रहना, इस हालत में भी लाखों करोड़ों