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________________ चैत्य के द्वार पर पत्थरों में अपने "संघ पट्टक" नामक ग्रंथ को आदेश देकर एवं खड़े रह कर खुदवाया । क्या यह सावध कर्तव्य नहीं था ? क्या इसको चैत्यवासियों का रूपान्तर नहीं कहा जा सकता है ? ____ आचार्य जिनवल्लभसृरि ने चैत्यवासियों के विरोध में "संघपटक"ग्रंथ बनाया उसके प्रत्युत्तर में चैत्यवासियों ने कुछ कहा या नहीं ? इसके लिये तो आज कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। पर जिनवल्लभसृरि ने चित्तौड़ के किले में रह कर भगवान महावीर स्वामी के पांच कल्याणक के बदले छः कल्याणक की प्ररूपणा की, इसके लिये चैत्यवासियों ने खूब ही आन्दोलन उठाया। यहां तक कि जिनवल्लभसूरि को निन्हवों की कोटि में रख उत्सूत्र प्ररूपक घोषित कर दिया। क्योंकि इनके पूर्व किसी ने भी भगवान महावीर के छः कल्याणक नहीं माने थे । जैनागमों के अतिरिक्त आचार्य हरिभद्रसूरि ने अपने “पंचासक" नामक ग्रंथ में वर्तमान सब तीर्थङ्करों के कल्याणक तिथीयों का उल्लेख करते हुए भगवान महावीर के भी पंच ही कल्याणक* और उनकी तिथी बतलाई है । और उस ग्रंथ की टीका करते हुए आचार्य श्री अभयदेवसृरि जो जिनवल्लभसूरि के गुरू थे, उन्होंने भी भगवान महावीर के पांच कल्याणक की पांच तीथियां पर टीका करते हुए पांच ही कल्याणक माने हैं । इनके सिवाय भी जिनवल्लभमूरि ने कई न्यूनाधिक क्रियाएं स्थापित की थी और उस समय इन बातों का तीव्र विरोध भी हुआ था और आज - देखो सटीक पंचाशक ग्रन्थ ।
SR No.032653
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1937
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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