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कच्छ सौरठ लाट मरुधर, पंचाल पावन कराये थे। : सिद्धपुत्र को जीत बाद में, अपना शिष्य बनाये थे ॥१५.
१०-प्राचार्य सिद्धसूरीश्वरजी . सिद्ध बचन थे लब्धि उनके, दशवां पठ्ठ दिपाया था।
सिद्ध सूरीश्वर नाम श्रापका बादी दल क्षोभाया था। लाखों जन को मांस छुडा कर; अहिंसा धर्म चमकाया था। पूर्वादि भू भ्रमण करके, जैन झण्डा फहराया था ॥१६
११-प्राचार्य रत्नप्रभ सूरीश्वर जंगम कल्पतरु सम शोभित, चिन्तामणि कहलाते थे।
रत्नप्रभ सुरी एकादश, पट्ट को श्राप दिपाते थे। द्रुतगति से मशीन शूद्धि की, आपने खूब चलाई थी। कठिन परिसह सहन करके, शासन सेवा बजाई थी ॥१७
१२-आचार्य यचदेव सूरीश्वर पट्ट बारहवें यक्षदेव की, भक्ति विबुध जन करते थे।
बादी मानी और वितण्डी, देख देख कर जरते थे। उद्योत किया शासन का भारी, नये जैन बनाते थे।
वीर प्रभु के शुभ सन्देश को, घूम घूम के सुनाते थे ।
१३-प्राचार्य कनक सूरीश्वर वी०नि० ३३६ पट्ट तेरहवें लब्धि भाजन, कक्कसरि अभिधान था।
जैन बनाना शान्ति कराना, यही आपका काम था।