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ऊहड़ मन्त्री मन्दिर बनाया, निर्वाण वर्ष सीतर वीर को
प्राकर कोरंट श्रीसंघ ने, विनती करी गुरुधीर को॥ लब्धि से दो रूप बनाकर, निज रूप उपकेश में रहै । व्योम मार्ग जाकर कोरंट में, एक नग्नमें प्रतिष्ठा कररहे ।।
. ७-आचार्य श्री यक्षदेव सूरीश्वर सप्तम पट्ट सूरि हुए, यक्षदेव उनका नाम था ।
जैनधर्म प्रचार करना, यही उनका काम था । अंग बंग कलिंग मगध, आये पुनः मरुधर देश में । . सिन्ध धरा में पाप सिधारे शिष्य थे साथ विशेष में ॥ कष्ठ सहे फिर भूखे रहे, उपकर था रग रग में ।
शिकार जाते राज कुंवर को. बोध दिया सद् मग्ग में ॥ रूद्राट् राजा कुंवर प्रजा, जैनी तो सब वे बन गये । ..चमकादिया वहां धर्म को, है धन्य उन सूरि के भये ॥
-आचार्य श्री कक्क सूरीश्वर पट्ट आठवें कक्क सूरि ने, उद्धार किया निज देश का। __ अहिंसा की नीव डारी, उच्छेद किया अक्ष शेष का ॥ मंडित मन्दिरों से की धरा, भक्ति रंग खूब बरसाया था। उद्योत किया था जिन शासन का, मिथ्यात को मार भगाया था ।
-प्राचार्य देवगुप्त सूरीश्वर बलि होते की रक्षा करके, सूरि जिसको बनाये थे।
देवगुप्त पट्ट नौवे होकर, झण्डे खूब फहराये थे ।