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সুমিষ্কা. कारण हुआ कि भीनमाल के राजा तोरमण, जिसने जैनाचार्य हरिगुप्त के उपदेश से भीनमाल में भगवान ऋषभदेवजी का मन्दिर बनाया था, के उत्तराधिकारी ' महरगुल' ने महाजन संघ पर जुल्म करना शुरु किया । तब विवश होकर कितने ही महाजन लोगों को मारवाड़ प्रान्त छोड़ कर लाट, गुजरात आदि प्रान्तों में जा कर बसना पड़ा । उसी समय से मारवाड़ के महाजन भिन्न मिन्न प्रान्तों में जाकर अपना निवासस्थान वहीं बनाने लगे। महाजनों के साथ साथ किसान और अन्य मजदूर भी मारवाड़ छोड़कर अन्य प्रान्तों में जाने लग गये। यही कारण है कि मारवाड़ का शिल्प-उद्योग और कृषिकार्य घटने लग गया जो घटते घटते बाज नहीं के बराबर हो गया है।
प्रसंगोपात मारवाड़ में जैन धर्म का प्रचार और महाजन संघ की स्थापना तथा अन्य प्रान्तों में महाजन लोगों के जानेका संक्षिप्त हाल ऊपर दिखाया गया है। मारवाड़ ही जैन जातियों की उत्पत्ति का मूल स्थान है यह अब निसंदेहपूर्वक सिद्ध हो चुका है। जैन भविकोंने अपने आत्महित साधन के लाभार्थ धर्म के स्तम्भ रूप कई स्थानों पर लाखों और क्रोडों रुपयों का द्रव्य खर्च कर जिन मन्दिर बनवाए जो इस गये बीते जमाने में जैन धर्म की जाहोजलाली की साक्षी दे रहे हैं। असंगत न होगा यदि इस स्थान पर जिनमन्दिरों व तीर्थों की एक तालिका पाठकों के सूचनार्थ यहाँ दर्ज कर दी जाय । आशा है पाठक समय समय पर इन तीर्थों की यात्रा कर अपने जीवन को सुखी और धार्मिक बनावेंगे।