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कल्पसूत्र प्रसिद्ध हैं जैनियों की ऐतिहासिक स्थिति जानने को मागधी भाषा का यह ग्रन्थ प्रसिद्ध है अंग्रेज़ी में और हिन्दी गुजराती में उसका भाषांतर होचुका है हरमनजेकोबी ने उस अन्य पर बहुत विवेचन किया है और मागधी भाषा का पूर्व की अनुसार विशेष प्रचार न होने के कारण उस कल्पसूत्र का रहस्य समझ में नहीं आता था इस लिये उसपर अनेक संस्कृत सरल टीकायें विद्वान् जैन साधुओं ने लिखी हैं उसमें से सुशोधिका, कल्पकिरणावली लक्ष्मी वल्लभी को श्राज कल संस्कृतज्ञ साध विशेष पढ़ते हैं।
ईसाइयों में बाइबिल मुसलमानों में कुरान और जैनिओं में यह कल्पसूत्र अधिक माननीय है क्योंकि कल्प नाम साधओं के प्राचार का है इसको किस तरह से पालन करना चाहिये यह बताने वाले ग्रन्थको कल्पसूत्र कहते हैं जोसाधु योग वहन (तपश्चर्या विशेष) किये हुवे हैं उन को इस ग्रन्थ के पढ़ने का और दूसरे साधुसाध्वियों को श्रवण करने का अधिकार था धीरे धीरे जब इस की अधिक मान्यता हो गई तब आनंद पुर (वडनगर गुजरात) नगर में राज पुत्र का शोक दूर करने को राजा को राज सभा में सुनाया था उस दिन से जैनी गृहस्थ भी सुनने लगे हैं भाद्रपदशुदि ४-५ के रोज जैन श्वेतांवर लोग बड़ी महिमा से श्रवण करते हैं किन्तु मागधी का अर्थ न समझने से उसके पहिले उसकी भाषा करके लोगों को साधु लोग सुनाते हैं श्वेतांबर साधु लोग चौमासे में एक जगह स्थित होते हैं उस को पर्युपणा कहत हैं और उसके लिये आषाढ़ शुदि १४-१५ से ५० दिन गिन कर यह सूत्र बांचते हैं किन्तु भाद्रपदवदी १२---१३ से