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________________ [१] निर्वाण तिथि श्वेताम्बरियों के ग्रन्थानुसार कात्तिक कृष्ण अमावस की शेष रात्रि और दिगम्बरी मत से कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को शेष रावि मानी गई है। [२] निर्वाण स्थान श्वेताम्बरी मत से हस्तिपाल राजा को लेखशाला में भगवान् का पौगलिक देहावसान हुआ और दिगम्बरी मतानुसार तालाव के मध्य में टीले पर भगवान् का निर्वाण माना गया है। यदि पाठक निरपेक्ष होकर विचारें तो पहिले अन्तर के विषय पर कोई विचार करना सम्भव नहीं है, क्योंकि अपने २ शास्त्र सभों के मान्य हैं। यदि हम श्वेताम्बर हैं तो हम श्री निर्वाण महोत्सव अमावस्या को पिछलौ रात्रि को हो करेंगे, और उसी दिन श्री वीर भगवान् को मुक्ति होने पर पूर्ण विश्वास रखेंगे। अथवा यदि हम दिगम्बरी हैं तो एक दिन आगे बढ़ कर चतुर्दशी को पिछली रात्रि को हो निर्वाण का समय मानेंगे और पूर्ण श्रद्धा पूर्वक उसी दिन उत्सव मनावेंगे। _ अब दूसरी बात-निर्वाण स्थान के विषय में विचार दृष्टि से यही ज्ञात होता है कि श्वेताम्बरियों का कथन ही अधिक श्रद्धेय और विश्वासयोग्य है। हमारे श्वेताम्बरी शास्त्र में प्रायः सर्वच वौर भगवान का निर्वाण स्थान पावापुरी ग्राम में वर्णित है, और इसी प्रकार और २ भागमों में जहां कि श्री महावीर खामी के निर्वाण का वर्णन मिलता है वहां पर श्री पावापुरी ग्राम में ही अन्तिम चातुर्मास और निर्वाण होना लिखा है। पाठक महाशय को स्मरण होगा कि पं. गजाधरलालजी के वर्णन में दिगम्बरी शास्त्रानुसार निर्वाण के एक मास पूर्व हो भगवान् का पावापुरी पाने का उल्लेख है, परन्तु श्वेताम्बर सिद्धान्तानुसार चातुर्मास में साधुषों का इस प्रकार विहार नौं होता है, वे एक ही स्थान में
SR No.032640
Book TitlePavapuri Tirth ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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