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________________ वहां एक चैत्यालय निर्माण कराये थे। पावापुरौ गांव का वर्तमान मन्दिर उसी स्थान में बना हुआ है, और वहां तीर्थंकर श्री महावीर खामी की मूर्ति एवं चरण पादुका प्रतिष्ठित है जो कि “गांव मन्दिर" के नाम से प्रसिद्ध है। गांव के बहिर्भाग दक्षिण की तरफ एक बड़ा तालाव है. जिसके मध्य भाग में एक विमानाकार मन्दिर बना हुआ है जिसको "जलमन्दिर" कहते हैं। यहाँ पर भगवान् के भौतिक देह को अन्त्येष्टिक क्रिया सम्पादित हुई थी। अपने श्वेताम्बर लोगों में यह प्रवाद है कि भगवान् का जिस समय अग्निसंस्कार हुआ था उस समय वहां पर जो देवता मनुष्योदि असंख्य प्राणी एकत्रित हुए थे, वे निज २ स्थान की ओर लौटते समय वहां की भस्म और मिट्टी पवित्र समझ कर थोड़ी२ उठा कर ले गये थे, इस कारण वहां एक तालाव सा बड़ा गढ़ा हो गया था। दिगम्बरी लोग भगवान् महावीर का निर्वाण समय और स्थान अन्य रूप से बतलाते हैं। दिगम्बर जैन पण्डित काव्यतीर्थ श्रीमान् गजाधरलालजी ने अपने "महावीर खामी और दीवाली" नामक पुस्तक में भगवान् का मोक्षगमन इस प्रकार वर्णन किया है : "भगवान् उपर्युक्तप्रकारसे उपदेश करते २ बहत्तरवें वर्ष जब कि मोक्षहोनेमें एकमास बाकी रहगयाथा बिहार प्रांत के पावापुर नामक स्थान पर पधारे। पावापुरके बनमें एक सरोवर था उसके बीचमें एक ऊंचा टोला था उसपर एकजगह बैठकर शुक्लध्यानका प्रारम्भ किया जिसके योगसे शेष रही ८५ कर्मप्रकृतियोंका सर्वथा नाशकरके कार्तिककृष्ण १४ को रात्रिकेशेष और अमावस्याके प्रभात ही स्वातिनक्षत्रमें भगवान् नश्वरमनुष्यशरीर को छोड़ कर ७२ वें वर्ष में निर्वाण को (लोकशिखरपर जहां सब मुक्तजीव विराजते हैं ) प्राप्त हो गये। उपरोक्त उद्दत अंश से पाठकों को ज्ञात होगा कि श्री वीर भगवान् के निर्वाण के विषय में दोनों सम्प्रदायों में दो प्रधान अन्तर है जो कि यहां स्पष्ट किया जाता है :
SR No.032640
Book TitlePavapuri Tirth ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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