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________________ ( 12 ) अकबर बादशाह के बाद शाहजहां सम्राट् के समय में इस तीर्थ के जा हार को कार्य बिहार निवासी श्वेताम्बर संघ की तरफ से पूर्ण रूप से हुई जिसका हाल प्रशस्ति आदि में स्पष्ट मिलता है। वर्तमान शताब्दि के प्रार जिस समय संवत् 1814 में गदर हुई थी और देशो सिपाही लोग बागी हुए 'उस समय इस प्रान्त में अपने तीर्थ स्थानों पर भी हानि पहुंची थी। समीपवर्त राजगृहे तीर्थ स्थित पञ्च पहाड़ों के बहुत से मंदिर नष्ट हुए थे। परन्तु में पावापुरीजी में इन लोगों का विशेष कोई उपद्रव नहीं हुआ था। इस स" यह तो सर्व प्रकार से सुरक्षित है। परन्तु मुझे खेद है कि अन्यान्य तीर्थ रहे. की तरह यहां भी आजकल अपने दोनों सम्प्रदायों के वैमनस्य का पूरा Fk पड़ा है। सन् 1825 में अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमिटी क प्रेसिडेण्ट सर हुकमचंदजी वगैरह ने पटने की अदालत में इस तीर्थ के सम्बन्ध में भी मुकद्दमा प्रारम्भ किये हैं जिससे दोनों सम्प्रदायों की सघ तरह से समय, शक्ति और धन की हानि हो रही है। ऐसे 2 कलह में कोई भी शुभ परिणाम की आशा नहीं की जा सकती। शासन देव से मेरी यही प्रार्थना है कि तीर्थ स्थान को अविचल रखें और शासननायक श्री वीर निर्वाण भूमि की उत्तरोत्तर उन्नति करें।
SR No.032640
Book TitlePavapuri Tirth ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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