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________________ ( ३७ ) कर उत्सूत्र की प्ररूपना की जिससे उनको संघ बाहर करने में भी चैत्यवासी शामिल थे यह बात भी जिनपति को खटकती थी। ६- चैत्यवासियों को यह भी बतलाना था कि पहिले भी जिनेश्वरसूरि ने पाटण में चैत्यवासियों को पराजय किया था। ७-विधिमार्ग नामक नये मत पर जो उत्सूत्र का कलंक या उसको भी छिपाना-मिटाना एवं धो डालना था। इत्यादि कारणों से जिनपतिसूरि ने इस प्रकार की मिथ्या कल्पना की थी। फिर भी उस समय जिनपतिसूरि ने एक बड़ी भारी भूल तो यह की थी कि जिनेश्वरसूरि के लिए अन्यान्य विशेषणों के साथ खरतर विरुद का विशेषण लगाना भूल गये । बस यह जिनपतिसूरि की भूल ही आज खरतरों के मार्ग में रोड़ा अटका रही है। शायद खरतर शब्द की उत्पत्ति जिनदत्तसूरि की खर प्रकृति के कारण हुई थी और उस समय इस खरतर शब्द को जिनदत्तसूरि व उनके शिष्य अपमान के रूप में समझते थे और जिनपतिसूरि के समय इसको अधिक समय भी नहीं हुआ था ! कारण, जिनदत्तसूरि का देहान्त वि. सं. १२११ में हुश्रा तब सं० १२२३ में जिनपति-सूरि बना था । यही कारण है कि जिनपति ने जिनदत्तसूरि को खरतर नहीं लिखा था । ____ अाधुनिक खरतरों को इस अपमान सूचक और लोकनिन्दनीय खरतर शब्द पर इतना मोह एवं आग्रह हो आया है कि खरतर शब्द को बिरुद एवं प्राचीन सिद्ध करने के लिये 'षट स्थानकप्रकरण' की प्रस्तावना में खरतर मतानुयायियों के कई प्रमाण उद्धत कर बिचारे थली जैसे भद्रिक लोगों को धोखो दिया है फिर
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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