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________________ इस टीका में जिनपतिसूरि ने जिनेश्वरसूरि को वादी विज. यता. बतलाया है यह केवल जिनेश्वरसूरि के विशेषण रूप में ही है न कि राजसभा में जाकर किसी चैत्यवासियों के साथ शास्त्रार्थ कर विजय प्राप्त करने के लिये है फिर भी पिछले लोगों ने गाड़ीरी प्रवाह की भांति जिनपतिसूरि की टीका का सहारा लेकर भिन्नभिन्न कल्पना कर डाली हैं पर जब खास जिनपतिसरि ने ही मिथ्या कल्पना की जो ऊपर के प्रमाणों से साबित होता है तो पिछले लोगों की कल्पना तो स्वयं ही मिथ्या साबित हो जाती है । अब यह सवाल उपस्थित होता है कि जिनपतिसरि ने यह मिथ्या कल्पना क्यों की होगी ? इसके लिये यह कहा जा सकता है कि उस समय जिनपतिसरि के सामने कई ऐसे भी कारण उपस्थित थे कि उनको इस प्रकार की मिथ्या कल्पना करनी पड़ी जैसे कि: १-यह संघपटक नामक ग्रन्थ जिनवल्लभसूरि ने चैत्यवासियों के खंडन के विषय में बनाया था जिसकी टीका जिनपतिसूरि लिख रहे थे। . २-चैत्यवासियों को विशेष हलके दिखाने थे। ३-चैत्यवासी जिनवल्लभसूरि को गर्भापहार नामक छटा कल्याणक की उत्सूत्र प्ररूपना के कारण संघ बाहर करने में शामिल थे इसका बदला भी लेना था । ४.-जिनेश्वरसूरि पाटण गये उस समय चैत्यवासियों ने न तो उनको ठहरने के लिए स्थान दिया था और न ठहरने ही दिया था उसका भी रोष था। ५-जिनदत्तसूरि ने पाटण में स्त्रियों को जिनपजा निषेध
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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