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________________ ( १३ ) के आसपास के समय में हुआ था पर यह नहीं समझना चाहिये कि उस समय के सत्र चैत्यवासी शिथिलाचारी हो गये थे । क्योंकि उस समय भी बहुत चैत्यवासी आचार्य सुविहित एवं अच्छे उप विहारीथे और उन्हों के लिखे हुये ग्रन्थ और पुस्तकारूद किये हुए आगम आज भी प्रमाणिक माने जाते हैं । किसी भी समाज में साधुत्व की अपेक्षा सदा काल एक से साधु नहीं रहते हैं अर्थात सामान्य विशेष रहा ही करते हैं जिसमें भी चैत्यवासियों का समय तो बड़ा ही विकट समय था क्योंकि उस समय कई बार निरंतर कई वर्षोंतक भयंकर दुष्काल का पड़ना; तथा जैनधर्म पर विधर्मियोंके संगठित आक्रमणका होना और उनके सामने खड़े कदम डट कर रहना इत्यादि उन आपत्ति काल में कई कई साधुओं में कुछ आचार शिथिलता आ भी गई हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। फिर भी उस समय चैत्यवासियों का प्रभाव कम नहीं था । सकल समाज उनको पूज्य भाव से मानता था राजा महाराजा उनके परमोपासक थे हजारों लाखों जैनेतरों को उन्होंने प्रतिबोध दे कर नये जैन बनाये थे, अनेक विषयों पर सैकड़ों मन्थों का निर्माण किया था, जैनधर्म के स्तम्भ रूप अनेक मंदिरमूर्तियों की प्रतिष्ठायें भी करवाई थीं । अगर यह कह दिया जाय कि चैत्यवासियोंने जैनधर्मको उस विकट परिस्थिति में भी जीवित रक्खा तो भी अतिशयोक्ति न होगी । चैत्यवासियों के समय की एक यह विशेषता थी कि उनका संगठन बल बड़ा ही जबर्दस्त था उस समय कोई भी व्यक्ति स्वच्छन्दतापूर्वक कोई कार्य एवं प्ररूपता नहीं कर सकता था । एवं चैत्यवासियों की सत्ता में कोई व्यक्ति उत्सूत्र प्ररूपना कर अलग
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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