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________________ ( १९ ) विधि चैत्ये श्री जिनचंद्र सूरि शिष्यैः श्री जिनकुशल सूरिभि श्री जिनप्रबोध सूरि मूर्ति प्रतिष्ठा कारिता च सा० कुमारपाल रतनैः सा० महणसिंह सा० देपाल सा० जगसिंह सा मेहा सभावकैः सपरिवारैः स्वश्रेयोऽर्थम् ॥ बाबू पूर्ण० खण्ड दूसरा लेखांक १६८८ ___ "सम्वत् १३४१ मा० श्री. १५ खरतरगच्छाये श्री जिनकुशल सूरि शिष्यैः जिनपद्मसूरिभिः श्री पाश्वनार्थ प्रतिमा प्रतिष्टिता कारिता च भव० बाहिसुतेन रत्नासँहेन पुत्र आल्हानादि परिवृतेन स्वपितृ सर्व पितृव्य पुण्यार्थ ॥" बाबू पूर्ण खं० दुसरा लेखांक १९२६ "सं० १३६६ भ० श्रीजिनचन्द्रसूरि शिष्यः श्री जिनकुशल सूरिभिः श्रीपार्श्वनाथ बिंबं प्रतिष्ठितं कारितंच सा० केशवपुत्र रत्न सा० जेहदु सु श्राविकेन पुण्यार्थं ।” बाबू पूर्ण० ख० दूसरा लेखाङ्क १५४५ यह आचार्य-जिनदत्त सूरि के छठे पट्टधर हुए हैं। पूर्वोक्त शिलालेखों से पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि जिन. कुशल सूरि के पूर्व किन्हीं आचार्यों के नाम के साथ खरतर शब्द का प्रयोग नहीं हुआ पर जिनकुशल सूरि के कई शिलालेखों में खरतर शब्द नहीं है और कई लेखों में खरतरगच्छ का प्रयोग हुआ है, इससे यह स्पष्ट पाया जाता है कि खरतर शब्द गच्छ के रूप में जिनकुशलसूरि के समय अर्थात् विक्रम की चौदहवीं शताब्दी ही में परिणत हुआ है। इसका अभिप्राय यह है कि
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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