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________________ ६-असठ प्राचरण १-जिस आचरण को असठ भावों से बनाया है और सब लोगों ने उसको स्वीकार किया है वह आचरण सकल श्रीसंघ को मानने योग्य है से सिद्धाणं बुद्धाणं के मूल दो श्लोक हैं अभी पांच श्लोक कहे जाते हैं, जयवीयराय के दो श्लोक हैं अभी पांच श्लोक कहे जाते हैं पर खरतर सिद्धाणं बुद्धाणं के तो पांच रलोक मानते हैं तब जयवीयराय के दो श्लोक कहकर तीन श्लोक छोड़ देते हैं। २-वादीवैताल के शान्तिसूरि की बनाई वृहदशान्ति में खरतरों ने अपने मतामह से कई नये पाठ मिला दिये हैं जिसको किसी गच्छवालों ने मंजूर नहीं किया। ७:-कल्याणक १-भगवान महावीर के चवन, जन्म, दीक्षा, ज्ञान और निर्वाण एवं पांच कल्याणक मूलसूत्रों में एवं हरिभद्रसूरि के पंचासक में तथा अभयदेवसूरि की टीका में स्पष्टतया माने हैं पर जिनवल्लमसूरि ने वि० सं० ११६४ के आश्विनकृष्णत्रयोदशी के दिन चित्तौड़ में गर्भापहार नामक छटे कल्याणक की उत्सूत्र प्ररूपना कर डाली जिसको खरतर आज पर्यंत मानते हैं और *वादीवैताल शान्तिसूरि के बनाये चैत्यवंदन वृहद भाष्य में जयवीयराय की दो गाथाओं के साथ 'वारिज्जई' तथा 'दुःक्खक्वनो कम्म. क्खो' की गाथा कहना लिखा है। पूर्वोक आचार्य की बनाई वृहदशांति तो खरतर मानते हैं पर उपरोक्त दो गाथा नहीं मानते हैं । वह नये मत की विशेषता है।
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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