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________________ ..४-सुबह के चैत्यवंदन और प्रतिक्रमण के बीच स्वाध्याय करने का विधान होने पर खरतर उस जगह स्वाध्याय नहीं करते हैं । ५-प्रतिक्रमणके अन्दर 'अढाईजेसुदीवसमुद्देसु' कहने का विधान होने पर भी कई खरतर इस पाठ को नहीं कहते हैं। ... ६-क्षुद्रोपद्रव का काउस्सग्ग और इसके साथ में चैत्यवंदन का विधान नहीं है वह तो खरतर करते हैं और दुःखक्खो कम्मक्खो का विधान होने पर भी वह नहीं करते हैं। ७-दुःखक्खो कम्मक्खो का काउस्सम्ग के बाद लघुशान्त कहने की परम्परा है खरतर नहीं कहते हैं पर उसको ही आगे चलकर कहते हैं। ८-प्रतिक्रमण में किसी प्राचार्य का काउस्सग्ग करने का विधान नहीं है तब खरतर अपने प्राचार्यों के काउस्सग्ग करते हैं फिर भी गणधर सौधर्म और जम्बु केवलि जैसे आचार्यों को तो वे भूल ही जाते हैं। -पक्खी चौमासी और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण के देववंदन में जयतिहुण स्तोत्र जो आचार्य अभयदेवसूरि ने कारण-- बसात् बनाया था चैत्यवंदन किया जाता है जिसमें .. तइ समरंत लहंति झत्ति वर पुत्तकलत्तइ, धण्णसुवण्णहिरण्णपुण्ण जण भुंजइ रजइ । पिक्खइ मुक्ख असंखसुक्ख तुह पास पसाइण, इअतिहुअणवरकप्परक्ख सुक्खइकुण महजिण।। निवृति भाव से प्रतिक्रमण में ऐसे श्लोकों को कहना एक विचारणीय विषय है।
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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