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________________ ( ३६ ) के खरतरमत ने उत्सूत्र - भाषण से जन्म लिया है और कदामह से ही यह आज पर्यन्त जीवित रहा है। प्रश्न- कई लोग यह भी कहते हैं कि यदि जिनदत्तसूरि आदि आचार्य उत्सूत्र प्ररूपक होते तो ग्राम ग्राम उनकी छत्रिये पादुकाएं, मूर्तियें और दादाबाड़ियें क्यों बनतीं तथा तीर्थङ्करों के मन्दिरों में उनके पादुका क्यों होते ? उत्तर- दादाजी ने अपने गुणों से पूजा नहीं पाई थी । उन्होंने अपने पर उत्सूत्र प्ररूपना के कलंक को छिपाने के लिये एक जाल रच कर ऐसा जघन्य काम किया था, वरना इनके पूर्व सैकड़ों हजारों आचार्य हुए थे, पर किसी ने अपने हाथों से अपनी मूर्तियें एवं पादुकायें पुजवाने की कोशिश नहीं की थी । देखिये 'जिनदत्तसूरि के थोड़े ही वर्षों बाद चलगन्छ में एक धर्मघोषसूरि नाम श्राचार्य हुए, उन्होंने अपने शतपदी नामक प्रन्थ में जिनदत्तसूरि के लिये लिखा है कि : १ - श्राविक स्त्रियों ने पूजा तो निषेध कर्यो 1 २ - लवण (निमक) जल, अग्नि में नोखवु ठेराख्यो । ३ - देरासर में जुवान वेश्या नहीं नचावी, किन्तु जे नानी के वृद्ध वेश्या होय ते नचाववी एवी देशना करी ४ - गोत्रदेवी तथा क्षेत्रपालादिकनी पूजा थी सम्यकत्व भागे नहिं एम ठेराज्य | ५ - मेज युगप्रधान छीए एम मनावा मांडयु | ६ - वली एवी देशना करवा मांडी के एक साधारण खातानु बाजोठ (पेटी) राखावु, तेने आचार्य नो हुकम लइ उघाड़वु ।
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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