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________________ ( ३५ ) - बातें एकान्त सत्यता के साथ कुछ भी सम्बन्ध नहीं रखती हैं क्योंकि आप स्वयं सोच सकते हो कि आज दुनिया में सैंकड़ों धर्म प्रचलित हैं जिसमें कई ऐसे भी धर्म हैं कि जिनकों खरतर भाई भी मिथ्या धर्म मानते हैं वे सैकड़ों हजारों वर्षो से अविच्छि रूप में चले आते हैं। उनकी वृद्धि एवं मानने के लिए लाखों करोड़ों आदमी उनको मानते भी हैं फिर भी सत्य की कसौटी पर कसने से वे मिध्या धर्म ही साबित होते हैं । अतः केवल किसी मत की वृद्धि एवं उसको हजारों लाखों आदमियों के मानने मात्र से ही सत्यता नहीं कही जाती है। आप दूर क्यों जावें खास जैनों में ही देखिये एक दिगम्बर समुदाय है जिसको हमारे खरतर -मत वाले जैन सिद्धान्त से खिलाफ समझते हैं उनको भी लाखों मनुष्य मानते हैं वैसे ही लौंकामत एवं ढूंढ़िया मत को भी समझ लीजिये कि उन्होंने बिना गुरु मत निकाला वह आज तक चल ही रहे हैं और करीब दो तीन लाख मनुष्य उनको पूज्यदृष्टि से भी देखते हैं ! इसी माफिक खरतर मत को भी समझ लीजिये, फिर भी यह कहना पड़ता है कि खरतरों ने तो करोड़ों को जैन संख्या से थोड़े से अनभिज्ञों को भगवान महावीर के छः कल्याणक - नार तथा aियों को जिनपूजा छुड़ाकर अपने अमुयायी बनाये पर लौका — ढूँढ़ियों ने तो लाखों जैनों से ही दो तीन लाख मनुष्यों को मूर्तिपूजा छुड़ाकर अपने अनुयायी बना लिये बतलाइये इसमें विशेषता खरतरों की है या ढूँढ़ियों की ? अतः आप समझ सकते कि मत चलने में तथा उसको बहुत मनुष्य मानने मात्र से ही सत्यता नहीं समझी जाती है । अतः मेरे पूर्व प्रमाणों से स्पष्ट सिद्ध हो गया है कि जिनवल्लभ का 'विधिमार्ग' और जिनदत्त
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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