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________________ ( २९ ) थी । उसने तो मिध्यात्व के प्रबलोदय से स्त्रियों को जिनपूजा करना निषेध कर ही दिया । फिर भी जैन शासन की तकदीर ही अच्छी थी कि जिनदत्तसूरि ने एक स्त्री को ही अशातना करती देख स्त्रियों को ही जिनपूजा करना निषेध किया । यदि इसी प्रकार किसी पुरुष को शातना करता देखता तो पुरुष को भी पूजा करना निषेध कर देता । आगे चल कर जिनदत्त सूरि ने तो यहां तक आग्रह कर लिया कि स्त्रियां जिन तीर्थङ्कर को छू नहीं सकती थीं तो वे उन की प्रतिमाओं को कैसे छ सकती हैं। इस बात का उसने केवल जबानी जमाखर्च ही नहीं रखा था पर अपने प्रन्थों में लेख भी लिख दिया। देखो जिनदत्तसूरि कृत कुलक जिस पर जिनकुशलसूरि : ने विस्तार से टीका रची है जिसमें लिखा है कि : संभव अकालेऽविन्दु कुसुमं महिलाणे तेण देवाणां । पूआई अहिगारो, न ओघओ सुत निदिट्ठो ॥ १ ॥ न छिविंति तहा देहं ओसणे, भावजिणवरिंदाणं । तह तप्पडिमंपि सया पूअंति न सड्ढ नारिओ ।। २ ।। प्र० पं० पृ० ३७१ यही कारण है कि खरतर मत में आज भी स्त्रियां जिन पूजा से वंचित रहती हैं। इतना ही क्यों पर जैसलेमेरादि कई नगरों के मन्दिर खरतरों के अधिकार में हैं, वहाँ अन्य गच्छवालों की ओरतों को खरतर जिन पूजा नहीं करने देते हैं, इस अन्त-राय का मूल कारण तो जिनदत्तसूरि ही हैं । इसी प्रकार महोपाध्यायजी धर्मसागरजी ने अपने प्रवचन, परीक्षा नामक ग्रन्थ के पृष्ठ२६७ पर लिखा है कि :
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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