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________________ ( २५ ) हो गई । अतः कई लोग जिनदत्त के मत को चामुण्डिक मत कहने लग गये । महोपाध्यायधर्मसागरजीके मतानुसार इस घटना का समय वि० सं० १२०१ का कहा जाता है । जिनदत्त ने जिनवल्लभ के त्रिविधि संघ को बढ़ा कर चतुर्विध संघ बना दिया। 'पाखण्डे पूज्यते लोका'। संसार में तत्व-ज्ञान को जानने वाले लोग बहुत थोड़े होते हैं। जिनदत्तसूरि के जीवन से यह भी पता मिलता है कि वह किसी को यंत्र, किसी को मंत्र, किसी को तंत्र और किसी को रोग निवारणार्थ औषधियां वगैरह बतलाया करता था। अतः जिनवल्लभ की बजाय जिनदत्त० के भक्तों की संख्या बढ़ गई हो तो यह असम्भव भी नहीं है, क्योंकि जनता हमेशा भौतिक सुखों को चाहने वाली होती है। वि० सं० १२०४ में जिनदत्तसूरि पाटण जाता है और एक दिन वह मन्दिर में गया। वहां पर कुछ रक्त के छींटे देखे । इस निमित्त कारण से उसके मिथ्यात्व कर्म का प्रबल्य उदय हो आया और उसने यह मिथ्या प्ररूपना कर डाली कि स्त्रियों को जिनप्रतिमा की पूजा करना नहीं कल्पता है। अतः कोई भी स्त्री जिन प्रतिमा की पूजा न करे इत्यादि । उस समय का पाटण जैनों का एक केन्द्र था केवल १८०० घर तो करोड़पतियों के ही थे। परमाईत महाराज कुमारपाल वहां का राजा था। कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य एवं राजगुरु कंकसूरि जैसे जिनशासन के स्तम्भ आचार्य वहां विद्यमान थे। इस हालत में जिनदत्त की इस प्रकार उत्सूत्र प्ररूपना को पट्टण का श्रीसंघ कैसे सहन कर सकता था। जब जिनदत्त की उत्सूत्र १-देखो-खरतरों की महाजन वंश मुक्तावली नामक किताब
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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